कौशाम्बी26सितम्बर25*शिवधनुष टूटा, सभा में गूंजा परशुराम का क्रोध**लक्ष्मण वाणी तीखि जबै, परशुराम रुषि आव, सभा रोमांचित हो उठी,*
*राम सियहि सुख पाव संवाद प्रसंग ने मिथिला सभा को जीवंत कर दिया, दर्शक रोमांचित लक्ष्मण-परशुराम संवाद ने दर्शकों को बांधा, सभा देर तक गूँजती रही*
*कौशाम्बी।* मंझनपुर मुख्यालय स्थित हिन्दु धर्म सभा श्री रामलीला कमेटी के तत्वावधान में नगर चल रही रामलीला में शुक्रवार की रात परशुराम-लक्ष्मण संवाद का मनमोहक मंचन किया। धनुष टूटने की गरजना सुन परशुराम कुपित भाव में मिथिला आ धमकते है। परशुराम के क्रोध में लक्ष्मण के तीखे वचन आग में घी का काम करते हैं। इसी बीच लक्ष्मण परशुराम के बीच तीखा संवाद शुरू हो जाता है। लीला देखने के लिए बड़ी संख्या में दर्शकों से मैदान भरा रहा।बता दे कि शुक्रवार को मंझनपुर की ऐतिहासिक रामलीला का लक्ष्मण-परशुराम संवाद जिसमें जिलेभर तख्त टूट जाने का चर्चा आज भी लोगो के जेहन में बैठा हुआ है, नगर व क्षेत्र के लोगो लक्ष्मण-परशुराम सवांद के लीला को देखने के लिए उत्साहित नजर आते है क्योकि इस संवाद में अध्यात्मिक अनुभव मिलता है। आज के इस रामलीला मंचन में दिखाया गया कि मिथिला में शिव धनुष भंग होने पर तपस्यारत भगवान परशुराम का ध्यान भंग हो जाता है और वे क्रोधित होकर मिथिला पहुंचते हैं। वहां उपस्थित राजाओं में भय व्याप्त हो जाता है। राजा जनक स्वयं उन्हें प्रणाम कर सीता जी का परिचय कराते हैं और विश्वामित्र जी श्रीराम-लक्ष्मण से परशुराम को प्रणाम कराते हैं। टूटे धनुष को देखकर परशुराम क्रोधित हो जाते हैं और राजा जनक से कारण पूछते हैं। इस पर लक्ष्मण उनके सामने आते हैं और दोनों के बीच करीब घंटो तक संवाद चलता है। परशुराम के क्रोध को देखकर श्रीराम बोले हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोडऩे वाला आपका कोई एक दास ही होगा। क्या आज्ञा है, मुझसे क्यों नहीं कहते। यह सुनकर मुनि क्रोधित होकर बोले की सेवक वह होता है जो सेवा करे, शत्रु का काम करके तो लड़ाई ही करनी चाहिए। हे राम! सुनो, जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह सहस्र बाहु के समान मेरा शत्रु है। वह इस समाज को छोड़कर अलग हो जाए, नहीं तो सभी राजा मारे जाएँगे। परशुराम के वचन सुनकर लक्ष्मणजी मुस्कुराए और उनका अपमान करते हुए बोले बचपन में हमने बहुत सी धनुहियाँ तोड़ डालीं, किन्तु ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। यह सुनकर परशुरामजी क्रोधित होकर कहने लगे काल के वश में होकर भी तुझे बोलने में कुछ होश नहीं है। सारे संसार में विख्यात शिवजी का यह धनुष क्या धनुही के समान है। लक्ष्मण जी ने हँसकर कहा सभी धनुष एक से ही हैं, पुराने धनुष के तोड़ने में क्या हानि-लाभ। मेरे बड़े भ्राता श्री रामचन्द्र जी के छूते ही टूट गया, इसमें उनका भी कोई दोष नहीं है। आप बिना ही कारण किसलिए क्रोध करते हैं। शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का प्रदर्शन करते हैं, कहकर अपने को नहीं जनाते। शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं। तब श्री रघुनाथजी ने इशारे से लक्ष्मणजी को रोक दिया। लक्ष्मणजी के उत्तर से, जो आहुति के समान थे, परशुरामजी के क्रोध रूपी अग्नि को बढ़ते देखकर रघुकुल के सूर्य श्री रामचंद्रजी जल के समान शांत करने वाले वचन बोले। अंततः जब परशुराम को विश्वास हो जाता है कि श्रीराम साक्षात भगवान विष्णु के अवतार हैं, तो वे दोनों भाइयों की वंदना कर तप के लिए वन को प्रस्थान करते हैं। लीला के मध्य आकर्षक नृत्य-नाटिकाओं ने दर्शकों को खूब आनंदित किया। आज के आकर्षण के रूप लक्ष्मण-परशुराम संवाद ने उपस्थित श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान किया। मंचन के दौरान लक्ष्मण एवं परशुराम के बीच हुआ संवाद दर्शकों में जोश और उत्साह का संचार करता रहा। रामलीला मंचन में बड़ी संख्या में धर्मप्रेमी, श्रद्धालु नागरिक उपस्थित रहे। पूरे पंडाल में जय श्रीराम के उद्घोष गूंजते रहे। इस मौके पर रामलीला कमेटी के अध्यक्ष आशीष केसरवानी उर्फ बच्चा, महामंत्री पंकज शर्मा, उपाध्यक्ष ज्ञानचन्द्र गुप्ता, सुशील नामदेव, कल्लू पण्डा, संगठन मंत्री झल्लर चौरासिया, रिकू केसरवानी, कोषाध्यक्ष सोना लाल केशरवानी, अजय वर्मा, मंत्री सुनील नामदेव, रोहित गुप्ता, राजू, राजीव केसरवानी, डा0 अवधेश पाण्डेय, चाटू भाई, मुकुन्दी लाल, भूपचन्द्र अग्रहरि, नीरज मोदनवाल, सुभाष, रज्जन श्रीवास्तव, राकेश मिश्रा, नवीन वर्मा, राहुल, लखन, मथुरा, अमित, डा0 सुरेश गुप्ता सहित नगरवासी मौजूद रहे।
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