July 7, 2025

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कौशाम्बी15जून24*पार्वती जन्म और संध्या चरित्र सुन हर हर महादेव से गूंजा पांडाल*

कौशाम्बी15जून24*पार्वती जन्म और संध्या चरित्र सुन हर हर महादेव से गूंजा पांडाल*

कौशाम्बी15जून24*पार्वती जन्म और संध्या चरित्र सुन हर हर महादेव से गूंजा पांडाल*

*तिल्हापुर मोड कौशाम्बी।* कौशांबेश्वर संकट मोचन आश्रम ट्रस्ट आमाकुआं कौशाम्बी में चल रहे श्री शिव महापुराण कथा के चौथे दिन डॉ ओम ओझा महाराज जी ने पार्वती जन्म का वर्णन किया। कहा कि ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा कि मेरे पुत्र सनकादी ने पित्रों की तीन कन्याओं में मेना को आशीर्वाद दिया कि वह विष्णु के अंशभूत हिमालय गिरि की पत्नी होंगी। उससे जो कन्या होगी वह पार्वती के नाम से विख्यात होगी। कहा कि रामचरितमानस में भी आया है कि सती जी ने मरते समय भगवान हरि से यह वर मांगा था कि मेरा हर जन्म में शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इस कारण हिमाचल के घर जाकर पार्वती के रूप में प्रकट हुई। नारद जी ने हिमाचल की पुत्री का हाथ देखकर बताया कि शिवजी को छोड़कर इनका दूसरा वर नहीं हो सकता है। यदि आपकी कन्या तप करे तब भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त कर सकती है। इस दौरान पार्वती ने महान तप किया। कुछ दिन जल और वायु का भोजन किया। कठोर उपवास किया। जो वेल पत्र सूखकर पृथ्वी पर गिरते 3000 वर्षों तक उन्हीं को खाया। इससे उनका नाम उमा पड़ गया।
*संध्या का चरित्र* कथा वाचक ओम ओझा जी महराज ने श्रोताओं को कथा में संध्या का चरित्र सुनते हुए कहा कि कामदेव ने जब आपना बाण चलाया तब ऋषी, ब्रह्माजी और उनके मानस पुत्र संध्या पर वशीभूत हो गए थे। तब शिवजी ब्रह्माजी पर हसें थे संध्या का चरित्र सुनकर समस्त कमनीयां सती–साध्वी हो सकती हैं। संध्या ब्रह्माजी की मानस पुत्री थी, जिसने घोर तपस्या करके अपना शरीर त्याग दिया था। फिर वह मुनिश्रेष्ठ मेधातिथि की पुत्री अरुंधति के रूप में जन्मी। संध्या ने तपस्या करते हुए अपना शरीर इसलिए त्याग दिया था क्योंकि वह स्वयं को पापिनी समझती थी। उसे देखकर स्वयं उसके पिता और भाइयों में काम की इच्छा जाग्रत हुई थी। तब उसने इसका प्रायश्चित करने के बारे में सोचा तथा निश्चय किया कि वह अपना शरीर वैदिक अग्नि में जला देगी, जिससे मर्यादा स्थापित हो। भूतल पर जन्म लेने वाला कोई भी जीव तरुणावस्था से पहले काम के प्रभाव में नहीं आ पाएगा। यह मर्यादा स्थापित कर में अपने जीवन का त्याग कर दूंगी।
मन में ऐसा विचार करके संध्या चंद्रभाग नामक पर्वत पर चली गई। यहीं से चंद्रभागा नदी का आरंभ हुआ। इस बात का ज्ञान होने पर ब्रह्माजी ने वेद–शास्त्रों के पारंगत, विद्वान, सर्वज्ञ और ज्ञानयोगी पुत्र वशिष्ठ को वहां जाने की आज्ञा दी। ब्रह्माजी नर वशिष्ठ जी को संध्या को विधिपूर्वक दीक्षा देने लिए वहां भेजा था।
चंद्रभाग पर्वत पर एक देव सरोवर है, जो जलाशयोचित गुणों से पूर्ण है। उस सरोवर के तट पर बैठी संध्या इस प्रकार सुशोभित हो रही थी, जैसे प्रदोष काल में उदित चंद्रमा और नक्षत्रों से युक्त आकाश शोभा पाता है। तभी उन्होंने चंद्रभागा नदी का भी दर्शन किया। तब उस सरोवर के तट पर बैठी संध्या से वशिष्ठ जी ने आदरपूर्वक पूछा, हे देवी! तुम इस निर्जन पर्वत पर क्या कर रही हो? तुम्हारे माता–पिता कौन हैं? यदि यह छिपाने योग्यन हो तो कृपया मुझे बताओ। यह वचन सुनकर संध्या ने महर्षि वशिष्ठ की ओर देखा। उनका शरीर दिव्य तेज से प्रकाशित था। मस्तक पर जटा धारण केए वे साक्षात कोई पूण्यात्मा जान पड़ते थे। संध्या ने आदरपूर्वक प्रणाम करते हुए वशिष्ठ जी को अपना परिचय देते हुए कहा―ब्राम्हण! मैं ब्रह्माजी की पुत्री संध्या हूं। मैं इस निर्जन पर्वत पर तपस्या करने आई हूं। यदि आप उचित समझें तो मुझे तपस्या की विधि बताइए। मैं तपस्या के नियमों को नहीं जानती हूं। अतः मुझ पर कृपा करके आप मेरा उचित मार्गदर्शन करें। संध्या की बात सुनकर वशिष्ठ जी ने जान लिया कि देवी संध्या मन मे तपस्या का दृढ संकल्प कर चुकी हैं। इसलिए वशिष्ठ जी8 ने भक्तवत्सल भगवान शिव का स्मरण करते हुए कहा हे देवी! जो सबसे महान और उत्कृष्ट हैं, सभी के परम आराध्य हैं, जिन्हें परमात्मा कहा जाता है, तुम उन महादेव शिव को अपने हृदय में धारण करो। भगवान शिव ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के स्त्रोत हैं। तुम उन्ही का भजन करो। ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करते हुए मौन तपस्या करो। मौन रहकर ही स्नान तथा शिव–पूजन करो। प्रथम दो बार छठे समय में जल को आहार के रूप में लो। तीसरी बार छठा समय आने पर उपवास करो। देवी! इस प्रकार की गई तपस्या ब्रह्मचर्य का फल देने वाली तथा अभिष्ट मनोरथों को पूरा करने वाली है। अपने मन में शुभ उद्देश्य लेकर शिवजी का मनन व चिंतन करो। वे प्रसन्न होकर तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी करेंगे। इस प्रकार संध्या को तपस्या की विधि बताकर और उपदेश देकर मुनि वशिष्ठ वहां से अंतर्धान हो गए।इस दौरान कार्यक्रम के आयोजक कौशांबेश्वर संकट मोचन ट्रस्ट संस्थापक बाबा बुद्धन दास महराज,आचार्य अशोक ओझा,उपाध्यक्ष संरक्षक राजू केशरवानी, रोहित मिश्र,कौशिक अग्रहरि ,विकास अग्रहरि,सचिव अंकित केशरवानी, चित्रकूट के संत खत्री बाबा, संदीप कुमार सिंह,रमेश पाल ,रज्जन महराज जी,के साथ साथ आमाकुआं के सनातन प्रेमियों के साथ सक्षम युवा विकास फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं सहित क्षेत्रीय भक्त मौजूद रहे।

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