कानपुर24जून2023* कृत्रिम तरीके से कैसे हुई बारिश, ये क्लाउड सीडिंग क्या बला है?
कृत्रिम वर्षा … विन्सेंट शेफर, एक स्व-सिखाया रसायनज्ञ जिसने आविष्कार किया
कृत्रिम वर्षा किसे कहते हैं?
क्लाउड सीडिंग को मानव निर्मित वर्षा और कृत्रिम बारिश बनाने के रूप में भी जाना जाता है।
जब नमी वाली गर्म हवा किसी ठंडे, उच्च दबाव वाले वातावरण के संपर्क में आती है। तो बारिश होने लगती है। गर्म हवा में ठंडी हवा से ज्यादा पानी इकट्ठा करती है और जब यह हवा अपने अंदर इकट्ठे पानी को ऊंचाई पर ले जाती है तो ठंडे जलवायु मैं मिल जाती है और अपने अंदर का जमा हुआ पानी के भारी हो जाने पर उसे नीचे गिराने लगती है।
भारत में कृत्रिम बारिश का इतिहास
कृत्रिम वर्षा करने के लिए प्रयुक्त होने वाला रसायन कौन सा है?
कृत्रिम वर्षा के लिए मेघवीजन के लिए प्रयुक्त रसायन सिल्वर आयोडाइड है।
महाराष्ट्र में 2009 में अमेरिकी कंपनी के सहयोग से इसका आगाज हुआ। कृत्रिम वर्षा के क्षेत्र में आंध्र आगे है। यहां 2008 से 12 जिलों में बड़े पैमाने पर यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस प्रदेश में कृत्रिम वर्षा के लिए सिल्वर आयोडाइड के स्थान पर कैल्शियम क्लोराइड का प्रयोग किया जा रहा है।
बीते दिनों कानपुर में एक ऐसी बरसात हुई जिसके बारे में आप कल्पना ही कर सकते हैं. दरअसल, ये प्राकृतिक बारिश नहीं थी, बल्कि आईआईटी कानपुर के शोधार्थियों नें कृत्रिम रूप से इस बारिश को तैयार किया था. ये तरीका इतना शानदार है कि अब देश के किसी भी कोने में जरूरत पड़ने पर कृत्रिम रूप से बारिश कराई जा सकती है.
कैसे हुई कृत्रिम बारिश
जहां पर कृत्रिम वर्षा करणी हो तब एक स्पेशल विमान के जरिए उस एरिया के बादलों पर ‘सिल्वर आयोडाइड’ यह केमिकल /सॉलिड कार्बन डाइऑक्साइड /साधारण नमक छिड़का जाता है इसके कारण बादल इकट्ठा होने लगते हैं (condesation)और वर्षा के अनुरूप स्थिति हो जाती है यह प्रयोग सफल होने के चांसेस काफी कम रहते हैं और काफी महंगे भी रहते हैं।
कृत्रिम बारिश कराने के लिए जो प्रोसेस इस्तेमाल किया गया उसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है. इस प्रोसीजर के तहत आप कृत्रिम तरीके से कहीं पर भी बारिश करा सकते हैं. इस प्रयोग को सफल बनाने में कानपुर आईआईटी को 6 साल लग गए.
क्या होती है क्लाउड सीडिंग
इसे ऐसे समझिए की अब तक बारिश तब होती थी, जब आसमान में काले बादल घेर लेते थे, बिजली कड़कती थी तब कहीं जा के बारिश होती थी. लेकिन क्लाउड सीडिंग के जरिए कभी भी कहीं भी बारिश कराई जा सकती है. सबसे बड़ी बात की इसकी मदद से इंसान अब सूखे और प्रदूषण जैसी समस्या से आसानी से निपट सकेगा. दरअसल, क्लाउड सीडिंग के दौरान एक विमान से ढेर सारे क्लाउड सीड बादलों में बिखेर दिए जाते हैं, जिसके बाद आसमान में बादल भर जाते हैं और फिर कुछ देर बाद बारिश हो जाती है. हालांकि, ये प्रक्रिया बेहद मुश्किल है.
ये क्लाउड सीड तैयार कैसे होते हैं?
अब सवाल उठता है कि जो क्लाउड सीड हम विमान के जरिए बादलों में डालते हैं वो तैयार कैसे होते हैं. आपको बता दें इन क्लाउड सीड्स को साइंटिफिक तरीके से लैब में तैयार किया जाता है. इसे तैयार करने के लिए इसमें सूखी बर्फ, नमक, सिल्वर आयोडाइड समेत कई और तरह के केमिकल मिलाए जाते हैं और फिर इसे तैयार कर के एयरक्राफ्ट के जरिए आसमान में फैला दिया जाता है. ये पूरी प्रक्रिया एक तरह की खेती जैसी होती है, इसीलिए इसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है. भारत से पहले यह प्रयोग यूएई और चीन में हो चुका है.
डॉ०यस०यन०सुनील पांडेय
कृषि मौसम वैज्ञानिक
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