September 1, 2025

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कानपुर 24जून *कानपुर मौसम विभाग वैज्ञानिक डॉक्टर एसएन पांडे

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कानपुर 24जून *कानपुर मौसम विभाग वैज्ञानिक डॉक्टर एसएन पांडे

उमस में क्यों रुलाने लगती है गर्मी? शरीर से बहती है पसीने की धारा, जानें वजह

उमस भरी गर्मी में इतना पसीना क्यों आता है? इसकी वजह वातारण में बढ़ती नमी ही है. पसीना आना प्राकृतिक क्रिया है, जो शरीर को ठंडा रखने के लिए आता है…

देश के अधिकतर राज्यों में भीषण गर्मी के बीच बारिश का सिलसिला जारी है. लेकिन मामूली बारिश से उमस इतनी बढ़ गई कि लोगों का हाल-बेहाल है. आसमान से सूरज नदारद है लेकिन गर्मी का कहर जारी है. शरीर पर चिपचिपापन और पसीने से गीले कपड़े इन दिनों की आम परेशानी है. बढ़ती उमस यानी आर्द्रता सुबह से लेकर रात तक परेशानी का सबब बनी हुई है. क्या आपने सोचा है कि बारिश होने के बाद उमस इतनी बढ़ क्यों जाती है और ये उमस भरी गर्मी मई-जून की चिलचिलाती गर्मी से भी ज्यादा क्यों रुलाती है? आइये जानते हैं..

हल्की बारिश के बाद बढ़ जाती है उमस

दरअसल, मई और जून में इतनी भीषण गर्मी होती है कि ये मौसम को एकदम शुष्क बना देती है और वातावरण में मौजूद नमी बेहद कम हो जाती है. लेकिन इसके बाद जब बारिश पड़ती है तो ये राहत नहीं कहर बन जारी है. इस दौरान तपती धरती पर पानी की कुछ बूंदें पड़ती है तो गर्म जमीन से भाप निकलती है. ये भाप वातावरण में नमी को बढ़ाती है. इस बारिश से तापमान में गिरावट तो आती है लेकिन ये मामूली गिरावट होती है, तो बारिश के बाद हमें बढ़ते तापमान के साथ नमी भी महसूस होती है, जिससे उसम भी गर्मी झेलनी पड़ती है.

वेट बल्ब तापमान मानव जीवन के लिए ख़तरनाक
तापमान और मानव शरीर पर इसके प्रभाव का आकलन करने में वेट बल्ब तापमान नया मानक होगा

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के समय में, गीले बल्ब तापमान की रिकॉर्डिंग अधिक यथार्थवादी होती है। यह हमें बताता है कि कोई स्थान मनुष्यों के लिए कितना रहने योग्य है और इसमें गर्मी और नमी दोनों शामिल हैं। यह इंगित करता है कि मानव शरीर की खुद को ठंडा करने की क्षमता के लिए गर्मी और आर्द्रता का क्या मतलब है।

उच्च आर्द्रता का स्तर उच्च तापमान के स्तर के साथ मिलकर शरीर के शीतलन तंत्र को गंभीर रूप से ख़राब कर देता है। सीधे शब्दों में कहें तो शरीर पसीने से खुद को ठंडा करता है। लेकिन जब वायुमंडलीय आर्द्रता एक विशेष स्तर से अधिक बढ़ जाती है तो त्वचा से पानी वाष्पित नहीं होगा।

32 डिग्री सेल्सियस का वेट बल्ब तापमान आमतौर पर अधिकतम होता है जिसे मानव शरीर सहन कर सकता है और सामान्य बाहरी गतिविधियाँ कर सकता है

32 डिग्री सेल्सियस का वेट बल्ब तापमान आमतौर पर अधिकतम होता है जिसे मानव शरीर सहन कर सकता है और सामान्य बाहरी गतिविधियाँ कर सकता है। यह 55 डिग्री सेल्सियस के शुष्क तापमान के बराबर है।

35 डिग्री का वेट बल्ब रीडिंग जीवन के लिए खतरा है और इससे हीट स्ट्रोक और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। कथित तौर पर भारत के कई हिस्सों में पहले से ही चरम गर्मी में अधिकतम सहनीय वेट बल्ब तापमान का अनुभव होता है। गीला बल्ब शब्द उस तरीके से आया है जिसमें थर्मामीटर के अंत के चारों ओर गीले कपड़े का एक टुकड़ा लपेटकर माप लिया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि कितना वाष्पीकरण तापमान को कम कर सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप, जल निकाय पहले की तुलना में अधिक दर पर वाष्पित हो रहे हैं, जिससे वातावरण में आर्द्रता का स्तर बढ़ रहा है। तापमान और मानव शरीर पर इसके प्रभाव का आकलन करने में वेट बल्ब तापमान नया मानक होगा।
डॉ०यस०यन०सुनील पांडेय
कृषि मौसम वैज्ञानिक