कानपुर देहात 15सितम्बर 25*यूपीआजतक न्यूज़ चैनल पर कानपुर देहात की कुछ महत्वपूर्ण खबरे…
[9/15, 5:55 AM] +91 96283 30454: *एस.पी श्रद्धा नरेंद्र पांडेय ने पुलिस लाइन के सभागार कक्ष में संपन्न हुए सैनिक सम्मेलन में पुलिस कर्मियों की समस्याओं को सुना*
*राजपत्रित अधिकारियों, थाना प्रभारियों, शाखा प्रभारियों के साथ पुलिस अधीक्षक ने अपराध गोष्ठी का आयोजन करके अपराध नियंत्रण कानून व्यवस्था की समीक्षा करते हुए दिए आवश्यक निर्देश*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात,,, पुलिस अधीक्षक श्रद्धा नरेन्द्र पाण्डेय ने पुलिस लाइन स्थित सभागार कक्ष में सैनिक सम्मेलन आयोजित करके पुलिसकर्मियों की समस्याओं को सुना,,, तत्पश्चात पुलिस अधीक्षक ने सभी राजपत्रित अधिकारियों, थाना/शाखा प्रभारियों के साथ अपराध गोष्ठी कर अपराध नियंत्रण/कानून व्यवस्था की समीक्षा की एवं आवश्यक दिशा निर्देश दिये।,पुलिस लाइन में चल रहे आरटीसी प्रशिक्षण के रिक्रूट आरक्षियों के साथ भी सैनिक सम्मेलन का आयोजन करके उनकी समस्याओं/सुझावों से रूबरू होकर सम्बन्धित को शीघ्र निस्तारण किये जाने हेतु आदेशित किया,
मालूम हो कि शनिवार को पुलिस लाइन सभागार कक्ष में पुलिस अधीक्षक श्रद्धा नरेन्द्र पाण्डेय ने सैनिक सम्मेलन का आयोजन करके पुलिस कर्मियों की समस्याओं को सुना। सम्मेलन के दौरान पुलिसकर्मियों ने अपनी ड्यूटी के दौरान आने वाली चुनौतियों, संसाधनों की कमी, एवं व्यक्तिगत समस्याओं को पुलिस अधीक्षक के समक्ष रखा। पुलिस अधीक्षक ने पुलिसकर्मियों की बातों को गंभीरता से सुना और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए सम्बन्धित को दिशा-निर्देश दिए। पुलिस अधीक्षक ने बताया है कि सैनिक सम्मेलन का उद्देश्य पुलिस बल के सदस्यों के साथ संवाद स्थापित करना और उनके कल्याण के लिए आवश्यक कदम उठाना है। उन्होंने सभी पुलिसकर्मियों को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रोत्साहित किया और जनसेवा में उनकी निष्ठा और समर्पण की सरा�
[9/15, 5:55 AM] +91 96283 30454: *गांव में बनी हुई साधन सहकारी समितियां कभी किसने और ग्रामीणों के लिए शॉपिंग मॉल जैसी थी,*,,,,,*अधिवक्ता जितेंद्र सिंह चौहान*
*वर्षों से बंद पड़ी साधन सहकारी समितियों को पुनः चालू कराना आवश्यक है*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात,,,गाँवों की साधन सहकारी समितियाँ कभी किसानों और ग्रामीणों के लिए शॉपिंग मॉल जैसी थीं। यही वह जगह थी जहाँ बीज, खाद, डीज़ल, कीटनाशक और रोज़मर्रा की ज़रूरतों का सामान भरोसे के साथ मिलता था।यह बात सिविल बार एसोसिएशन अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता जितेन्द्र प्रताप सिंह चौहान ने लगभग दस वर्षों निष्क्रिय साधन सहकारी समिति रामपुर निटर्रा विकास खण्ड संदलपुर को पुनः संचालित करने के सम्बन्ध में दनियापुरपुर में सहकारी बंधुओं के साथ आयोजित सभा में सभा की अध्यक्षता करते हुए कही।उन्होंने आगे कहा कि किसानों को उधार सुविधा भी समिति देती थी और फसल बेचकर हिसाब चुकता होता था। आज वही समितियाँ उपेक्षा के कारण बंद पड़ी हैं। इन्हें पुनर्जीवित करना ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का रास्ता है। सहकारी समितियाँ फिर से सक्रिय हों, यही समय की पुकार है। जितेन्द्र चौहान ने कहाकि गाँव की सहकारी समितियाँ किसानों की रीढ़ हैं। जो समितियाँ वर्षों से बंद पड़ी हैं, उन्हें हर हाल में पुनः चालू कराना हमारी प्राथमिकता है। समिति के पुनर्जीवन से किसानों को खाद व अन्य सुविधाएँ समय पर मिलेंगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई मजबूती मिलेगी
सन्दलपुर सहकारी समिति अध्यक्ष सचिव संघ संरक्षक विनोद कटियार ने कहाकि बंद सहकारी समितियाँ किसानों की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी हैं।हमारा संकल्प है कि इन्हें पुनः सक्रिय कर खेती की लागत कम की जाए।समिति के माध्यम से खाद और बीज समय पर उपलब्ध होंगे।यह कदम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा देगा।
रनिया सहकारी संघ अध्यक्ष राघवेन्द्र सिंह सेंगर ने कहाकि बंद सहकारी समितियाँ किसानों के साथ अन्याय हैं।हम हर स्तर पर संघर्ष कर इन्हें पुनः चालू कराएँगे।किसान को खाद और बीज समय पर व उचित दर पर मिलना उसका हक है, और यह हक हम दिलाकर रहेंगे।सहकारी आंदोलन को मजबूत बनाना ही हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
बैठक में उपस्थित किसानों ने अपनी व्यथा रखते हुए कहा कि समिति बंद होने से उन्हें सबसे अधिक कठिनाई खाद और बीज की हो रही है। निजी बाजार में न केवल दाम बहुत ज्यादा हैं बल्कि समय पर उपलब्धता भी नहीं हो पाती। किसानों का कहना था कि खेती की लागत लगातार बढ़ रही है और सहकारी समिति ही उनकी असली सहारा है। उन्होंने मांग रखी कि समिति को तत्काल पुनः चालू कराया जाए ताकि छोटे और मध्यम किसान भी सुलभ दरों पर खाद व अन्य सुविधाएँ प्राप्त कर सकें।इस अवसर पर निष्क्रिय समिति को अतिशीघ्र चालू कराने का संकल्प लिया गया।
संचालन शिक्षामित्र संघ जिलाध्यक्ष महेन्द्र पाल ने किया।
कार्यक्रम संयोजन जनमेजय सिंह ने किया।प्रमुख रूप से राम सिंह तोमर एडवोकेट अध्यक्ष सहकारी संघ झीझक ,अखिलेश सिंह, सचिव संघ जिलाध्यक्ष मुकेश गुप्ता, रंजीत कटियार, नरेन्द्र दीक्षित, पूर्व प्रधान रामशंकर पाल, ग्राम प्रधान छविराम, ऋतिक कटियार ,शिवम दीक्षित ,बृजेश तिवारी, हृदयराम, शिवम यादव, तन्नू शुक्ला रहे।
[9/15, 5:55 AM] +91 96283 30454: *टीईटी अनिवार्यता को लेकर सी.एम योगी से मिले एमएलसी देवेंद्र, सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ/कानपुर देहात। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य किए जाने के बाद से प्रदेश भर के शिक्षकों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। इसी क्रम में एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने शनिवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की। उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की। एमएलसी ने मुख्यमंत्री को बताया कि शिक्षकों के चयन के लिए अलग-अलग समय में अलग-अलग योग्यता निर्धारित थी। ऐसे में इंटर, बीपीएड-सीपीएड, बीएड प्राथमिक स्तर पर लागू था जोकि अब टीईटी के लिए अर्ह योग्यता नहीं है।
न्यायालय के फैसले से प्रदेश के डेढ़ लाख शिक्षकों और उनके परिवारों का भविष्य अंधकारमय होने का खतरा बढ़ गया है। शिक्षकों में काफी निराशा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के साथ ही सरकार अपनी विधायी शक्तियों का प्रयोग करते हुए नया कानून बनाने व संशोधित करने का निर्देश सक्षम प्राधिकारी को जारी करें जिससे शिक्षकों का सामाजिक जीवन सुरक्षित रह सके। एमएलसी ने बताया कि सीएम ने इस मामले में सकारात्मक कार्यवाही का आश्वासन दिया है हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले बाध्यकारी होते हैं उनमें बदलाव, सुधार अथवा परिवर्तन करवा पाना इतना आसान नहीं होता है।
[9/15, 5:55 AM] +91 96283 30454: *प्रोजेक्ट नई किरण में 30 मामले हुए प्रस्तुत तीन मामलों का हुआ निस्तारण*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात,, रविवार को रिजर्व पुलिस लाइन कानपुर देहात स्थित सभागार कक्ष में प्रोजेक्ट नई किरण की शुरुआत पुलिस अधीक्षक श्रद्धा नरेन्द्र पाण्डेय के निर्देशन में की गई। नई किरण में 30मामले आये, जिनमें नई किरण के सभी सदस्यों द्वारा समझाने के बाद 02 परिवारों में आपसी सहमति के आधार पर समझौता कराया गया। पति-पत्नी खुशी-खुशी साथ रहने को तैयार हो गये, शेष प्रार्थना पत्रों में आगे की तिथि दी गयी। प्रोजेक्ट नई किरण के तहत बिखरे परिवारों को एक सूत्र में बांधने का प्रयास है।
इस कार्यक्रम में महिला निरीक्षक सीमा सिंह (प्रभारी महिला सहायता प्रकोष्ठ) व थानाध्यक्ष श्रीमती सुषमा, म०हे0का0 54 जयमाला, म0का0 1259 रंजना सोनकर, म0का0 1284 कु0 रीनू, म0का0 441 दीपिका शर्मा, व प्रोजेक्ट नई किरण के सदस्यण- श्रीमती डा० पूनम गुप्ता व श्रीमती कंचन मिश्रा व रामप्रकाश सिंह आदि का विशेष योगदान रहा।
[9/15, 5:55 AM] +91 96283 30454: *टेट का खौफ*:
*जब पता चला बिना टेट नहीं बचेगी नौकरी तो टेट परीक्षा की तैयारी में जुटे शिक्षक*
*सीसीएल अवकाश लेकर टेट परीक्षा की तैयारी में जुटी शिक्षिकाएं*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने हालही में साफ कर दिया है कि अब शिक्षक बनने या प्रमोशन पाने के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य होगा। कोर्ट ने कहा कि बिना टीईटी पास किए कोई भी शिक्षक न तो नई नियुक्ति पा सकेगा और न ही प्रमोशन का हकदार होगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए कहा कि जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पांच साल से कम बची है उन्हें सेवानिवृत्ति तक छूट दी जाएगी लेकिन प्रमोशन के लिए उन्हें भी टीईटी पास करना होगा। वहीं पुराने शिक्षकों को दो साल का समय दिया गया है जिसमें उन्हें टीईटी पास करना अनिवार्य है वरना सेवा से हटाया जाएगा। आदेश के बाद से शिक्षकों की नींद उड़ी हुई है। इस फैसले से पूरे देश में करीब 10 लाख और यूपी में करीब 1 लाख 30 हजार शिक्षक प्रभावित होंगे।
तैयारी में जुटे शिक्षक-
माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा टेट अनिवार्य किए जाने के आदेश के बाद से शिक्षकों में खलबली मची हुई है महिला शिक्षिकाएं सीसीएल अवकाश लेकर टेट की तैयारी करने में जुट गई हैं लेकिन पुरुष शिक्षक सिर्फ स्कूल में ही थोड़ा बहुत पढ़ाई कर पा रहे हैं बाकी घर आने पर घरेलू कार्यों में ही लगे रहते हैं। कई शिक्षकों ने अपने-अपने घरों को ही स्टडी केंद्र बना लिया है। स्कूलों में पढ़ाने के बाद शाम को घंटों तक किताबों में डूबे रहना उनकी मजबूरी बन गया है। व्हाट्सएप ग्रुपों पर शिक्षक आपस में सामान्य ज्ञान, गणित, हिंदी और अन्य विषयों से संबंधित प्रश्नोत्तरी व नोट्स साझा कर रहे हैं। कई शिक्षक तो यहां तक कह रहे हैं कि शाम के समय में टेट की कोचिंग ज्वाइन करेंगे।
पांच साल से ज्यादा सेवा वाले शिक्षक सबसे बड़ी चुनौती में-
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि जिन शिक्षकों की सेवा अवधि 5 वर्ष से अधिक है उन्हें हर हाल में टीईटी पास करना होगा अन्यथा सेवा समाप्त हो सकती है। यही नहीं पदोन्नति के लिए भी टीईटी पास करना अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती उन अनुभवी शिक्षकों के सामने है जिन्होंने वर्षों तक पढ़ाया तो है लेकिन अब उन्हें परीक्षा की तैयारी करनी पड़ रही है।
जनवरी में हो सकती है परीक्षा-
शासन ने 29 और 30 जनवरी को परीक्षा की संभावित तिथियाँ घोषित कर दी हैं। आवेदन प्रक्रिया भी जल्द शुरू होने वाली है। ऐसे में अब समय बहुत कम बचा है और यह चिंता शिक्षकों के चेहरों पर साफ देखी जा सकती है। विभिन्न शिक्षक संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर अपील जारी की है। संगठनों का कहना है कि शिक्षक समय गंवाए बिना सिलेबस के अनुसार तैयारी करें क्योंकि टीईटी क्वालिफाई करना उतना कठिन नहीं है जितना समझा जा रहा है। यदि शिक्षक गंभीरता से तैयारी करें तो आसानी से पास हो सकते हैं।
शिक्षामित्रों का अनुभव डर बढ़ा रहा-
इससे पहले भी माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहायक अध्यापक बने शिक्षामित्रों को दोबारा शिक्षामित्र बनना पड़ा था। इस घटनाक्रम ने हजारों परिवारों को गहरा झटका दिया था। यही वजह है कि इस बार शिक्षक किसी भी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहते। उनका मानना है कि अगर थोड़ी भी लापरवाही की तो नौकरी से हाथ धोना तय है।
विरोध नहीं, मेहनत ही विकल्प-
अधिकांश शिक्षकों की राय है कि आंदोलन और विरोध से ज्यादा कुछ फायदा नहीं होगा। माननीय सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में बदलाव की संभावना नहीं रखता इसलिए मेहनत ही एकमात्र रास्ता है। एक शिक्षक ने कहा हमारे पास अब सिर्फ दो विकल्प हैं या तो परीक्षा पास करें या फिर नौकरी गंवाने का जोखिम उठाएँ इसलिए पढ़ाई ही हमारी ढाल है। हमने ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से पढ़ाई शुरू कर दी है।
[9/15, 5:55 AM] +91 96283 30454: *परिषदीय शिक्षकों को डरा रहा टेट का भूत, छूट पाने की आस में पीएम से लगा रहे गुहार*
*यू.पी में करीब 1.3 लाख शिक्षकों पर लटकी तलवार*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात। माननीय सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले से लाखों शिक्षकों की नौकरी पर संकट आ गया है क्योंकि अब कक्षा 1 से 8 तक के सभी शिक्षकों को दो साल के भीतर टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास करनी होगी वरना नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। पदोन्नति चाहने वाले शिक्षकों के लिए भी टीईटी पास करना अनिवार्य है। यह आदेश 2011 से पहले बिना टीईटी के नियुक्त हुए कई पुराने शिक्षकों के लिए एक बड़ी चुनौती है और वे इस पर राहत पाने के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं। टेट परीक्षा की अनिवार्यता से उत्तर प्रदेश में करीब 130000 शिक्षक प्रभावित होंगे। शिक्षक नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस मुद्दे पर तत्काल पहल नहीं की तो प्रदेशभर में बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा। उन्होंने केंद्र सरकार से अध्यादेश लाकर कानून में संशोधन करने या माननीय सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की है।
कितने शिक्षक होंगे प्रभावित-
उत्तर प्रदेश में वर्तमान में प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक = 338590
उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक = 120860
कुल शिक्षक = 459450
टेट लागू होने के बाद कितने पदों पर आई भर्ती:-
शिक्षक भर्ती कब आई
72825 नवंबर 2011
9770 अक्टूबर 2012
10800 अप्रैल 2013
10000 अक्टूबर 2013
4280(उर्दू भर्ती) अगस्त 2013
29334 जुलाई 2013
15000 दिसंबर 2014
3500(उर्दू भर्ती) जनवरी 2016
16448 जून 2016
12460 दिसंबर 2016
68500 जनवरी 2018
69000 दिसंबर 2018
*इन भर्तियों में रिक्त पद रह गए करीब 10 प्रतिशत*
टेट पास शिक्षक 2011 के बाद वाले करीब = 295000
टेट पास शिक्षक 2011 के पहले वाले करीब =15000
कुल टेट पास शिक्षक = 310000
बगैर टेट पास शिक्षकों की संख्या:- (459450-310000) = 149450
प्रतिवर्ष प्रदेश में करीब 12000 शिक्षक सेवानिवृत्ति होते हैं इस प्रकार 2 वर्ष में करीब 24000 शिक्षक सेवानिवृत्ति हो जाएंगे अर्थात् टेट परीक्षा की अनिवार्यता से करीब 129450 शिक्षक प्रभावित होंगे।
[9/15, 5:55 AM] +91 96283 30454: *दिव्यांग जनों के प्रति संवेदनशीलता एवं सांकेतिक भाषा का प्रशिक्षण देने के लिए किया गया प्रशिक्षित*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात,रिजर्व पुलिस लाइन, जनपद कानपुर देहात में दिव्यांगजनों के प्रति संवेदनशीलता एवं सांकेतिक भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन संपन्न हुआ..
मालूम हो कि रविवार को पुलिस अधीक्षक श्रद्धा नरेन्द्र पाण्डेय के निर्देशन में आगामी अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (23 सितंबर 2025) के परिप्रेक्ष्य में मूक/बधिर नागरिकों की समस्याओं, संवाद की कठिनाइयों और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने तथा दिव्यांगजनों के साथ सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करने के उद्देश्य से पुलिस लाइन स्थित सभागार कक्ष में एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मोहम्मद फारूख, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश बधिर फैडरेशन (रजि0), लखनऊ, उ0प्र0 एवं क्षेत्राधिकारी लाइन्स आलोक चौधरी सहित अन्य अधिकारी/कर्मचारी गण उपस्थित रहे।
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को मूक/बधिर व्यक्तियों के साथ प्रभावी संवाद स्थापित करने के लिए सांकेतिक भाषा का प्रशिक्षण देना, उनकी चुनौतियों को समझना और उनके अधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाना था। इससे पुलिस कर्मियों को दिव्यांगजनों के साथ काम करते समय अधिक समावेशी और सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। कार्यक्रम में मोहम्मद फारूख ने बधिर समुदाय की सामाजिक, कानूनी और व्यावहारिक चुनौतियों पर प्रकाश डाला और पुलिस कर्मियों के साथ सांकेतिक भाषा के माध्यम से संवाद स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “पुलिस और समाज के बीच संवाद की कड़ी को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी नागरिकों की आवश्यकताओं और अधिकारों के प्रति संवेदनशील हों।” साथ ही क्षेत्राधिकारी लाइन्स आलोक कुमार ने कहा, “यह प्रशिक्षण कार्यक्रम पुलिस विभाग की ओर से दिव्यांगजनों के प्रति समर्पण और संवेदनशीलता का एक हिस्सा है। पुलिस सेवाओं तक सभी नागरिकों की पहुंच सुनिश्चित हो और कोई भी व्यक्ति अपनी विशेष आवश्यकताओं के कारण पीछे न रह जाए।”
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को बुनियादी सांकेतिक भाषा, मूक/बधिर व्यक्तियों के साथ व्यवहार के तरीके और उनकी सहायता कैसे की जाए, इस पर व्यावहारिक जानकारी दी गई। प्रशिक्षण के दौरान विशेषज्ञों द्वारा इंटरएक्टिव सत्र भी आयोजित किए गए, जिसमें पुलिस कर्मियों ने सक्रिय भागीदारी की।
[9/15, 5:55 AM] +91 96283 30454: *नियम विरुद्ध तरीके से लागू की गई टेट परीक्षा, शिक्षकों के छूट रहा है पसीना*
*55 साल की उम्र में पढ़ाई करने को मजबूर हुए शिक्षक*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात। टीईटी अनिवार्यता का प्रश्न आज सिर्फ नियमों और आदेशों का मामला नहीं रह गया है बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की गरिमा से जुड़ा हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश एनसीटीई की 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना और बाद की संशोधित अधिसूचनाओं को देखने पर साफ होता है कि असल गलती शिक्षकों की नहीं बल्कि नीतिगत लापरवाही और प्रशासनिक जिम्मेदारी से बचने की रही है। एनसीटीई ने नियम तो बना दिए पर उनके अनुपालन की ठोस तैयारी नहीं की। यदि नए मानदंड लाने थे तो उसके साथ व्यापक प्रशिक्षण योजना, संसाधन और समयबद्ध संक्रमण नीति भी बननी चाहिए थी। राज्य सरकारों ने भी इन नियमों को लागू करने के लिए स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण, फंडिंग और सुविधाओं की व्यवस्था करने में गंभीर चूक की। नतीजा यह हुआ कि हजारों शिक्षक जिनकी सेवा सालों के अनुभव से शिक्षा व्यवस्था को मजबूती देती रही अब डर और अनिश्चितता में जी रहे हैं।
समय-सीमाएँ बढ़ाने का खेल भी इस दौरान चलता रहा है पर असल में कोई प्रशिक्षण व्यवस्था विकसित नहीं की गई। यह सिर्फ प्रशासनिक जिम्मेदारी टालने का तरीका साबित हुआ। पूर्वव्यापी नियम लागू करने से बचाने की संवैधानिक चेतावनियों के बावजूद एनसीटीई और राज्य सरकारें स्पष्टता देने में विफल रहीं। इसका परिणाम यह है कि आज अनुभवी शिक्षकों में मानसिक तनाव, पारिवारिक दबाव और असुरक्षा की स्थिति पैदा हो गई है। 55 साल की उम्र के बाद भी शिक्षक रात में पढ़ाई करने को मजबूर हो गए हैं। ग्रामीण स्कूलों में शिक्षकों की निरंतरता और शिक्षा की गुणवत्ता पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ रहा है। इस स्थिति में तत्काल कुछ ठोस कदम आवश्यक हैं। सबसे पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, एनसीटीई और राज्य सरकारों को स्पष्ट और सार्वभौमिक स्पष्टीकरण देना चाहिए कि किन शिक्षकों को 2010 की अधिसूचना के तहत छूट मिली थी और किसे कब तक अनुपालन करना है। इसके साथ ही प्रशिक्षण के लिए मुफ्त मॉड्यूल, ऑनलाइन-ऑफलाइन कोर्स और पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए। जो शिक्षक प्रशिक्षण के लिए पंजीकरण कर लें उनकी सेवाओं पर कोई नकारात्मक कार्यवाही न हो और जिन क्षेत्रों में प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध नहीं है उन्हें संवैधानिक संरक्षण दिया जाए। अनुभवी शिक्षकों के ज्ञान और वर्षों की सेवा को मान्यता देते हुए वैकल्पिक मूल्यांकन या ब्रिज कोर्स जैसी व्यवस्था लागू की जा सकती है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एनसीटीई और राज्य सरकारों की जवाबदेही तय हो। यह पूछा जाना जरूरी है कि समय रहते प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध क्यों नहीं कराए गए। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी तब तक ऐसी लापरवाही दोहराई जाती रहेगी। अंततः यह सवाल सिर्फ प्रशासनिक कमी का नहीं बल्कि न्याय और संवैधानिक मूल्यों का है। बिना पर्याप्त तैयारी और सहयोग दिए शिक्षकों को नियमों के कठघरे में खड़ा करना किसी भी लोकतंत्र की मर्यादा के अनुरूप नहीं है। अब जरूरत है कि नीति-निर्माता शिक्षक वर्ग को संदेह की नजर से देखने के बजाय करुणा, न्याय और सार्वजनिक हित के सिद्धांतों पर आधारित समाधान निकालें। यही रास्ता न केवल शिक्षकों की गरिमा की रक्षा करेगा बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था को भी पतन से बचाएगा।
[9/15, 5:55 AM] +91 96283 30454: *सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय पर करें पुनर्विचार, शिक्षकों के अनुभव एवं सेवा को न किया जाए दरकिनार*
बैनर न्यूज़ ब्यूरो
कानपुर देहात। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सभी शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करना अनिवार्य होगा चाहे वे कितने भी वर्षों से सेवा में हों। इससे कई शिक्षक चिंतित हैं विशेषकर जो रिटायरमेंट के काफी करीब हैं। जिन्होंने ताउम्र बच्चों को भविष्य गढ़ने की शिक्षा दी, आज वही गुरुजन अपने भविष्य की अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने शिक्षकों की नींद छीन ली है। अब हर शिक्षक को शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करना अनिवार्य होगा, चाहे वे बरसों से सरकारी नौकरी कर रहे हों। रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़े कई शिक्षक, जिन्होंने अपनी पूरी जवानी शिक्षा सेवा को समर्पित कर दी, अब इस आदेश से चिंतित और आहत हैं। कोर्ट ने उन्हें दो साल का वक्त दिया है, लेकिन डर यह है कि अगर परीक्षा पास न कर पाए तो नौकरी ही हाथ से जा सकती है। शिक्षकों का कहना है कि यह फैसला उनके अरमानों और बुज़ुर्गी की शांति पर गहरी चोट जैसा है। वे सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को इस आदेश से छूट दी जाए ताकि उनके जीवनभर की मेहनत पर पानी न फिर जाए। शिक्षकों का कहना है कि पुराने शिक्षकों की नियुक्ति के समय जो नियम तय थे, वह उनमें खरे हैं। अब अगर नए नियम लागू हो तो केवल वह आगे आने वाली नई भर्तियों पर हों। पुराने शिक्षकों के लिए यह फैसला अनुचित है। शिक्षाशास्त्री प्रवीण त्रिवेदी एवं राजेश कटियार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का शिक्षकों को टीईटी में शामिल करने का जो निर्णय आया है उससे शिक्षकों में असंतोष व्याप्त है क्योंकि उत्तर प्रदेश के लाखों शिक्षक ऐसे हैं जिनका सेवाकाल लगभग 10 साल शेष है। ऐसी स्थिति में शिक्षकों को टीईटी में सम्मिलित करने से अन्य विभागों के लिए भी एक गलत प्रथा प्रारंभ हो सकती है। ऐसे तो पुराने डॉक्टरों को नीट परीक्षा और दूसरे विभाग के कर्मचारियों को पीईटी परीक्षा में शामिल करने के लिए भी मांग उठ सकती है जोकि नितांत गलत है। शिक्षा का क्षेत्र उन वरिष्ठ शिक्षकों के बिना अधूरा है जिन्होंने 20 से 30 वर्षों तक छात्रों के भविष्यों को सँवारने में अपना समर्पण और मेहनत दिखाई है। ऐसे अनुभवी शिक्षकों पर तलवार लटकाना न केवल अन्याय है बल्कि शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करने जैसा है। अनुभव को नजरअंदाज कर टीईटी थोपना विभाग के लिए हानिकारक है। वरिष्ठ शिक्षक विभाग की रीढ़ की तरह हैं और उन्हें तोड़ना शिक्षा की नींव को कमजोर करना है इसलिए सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर पुनर्विचार होना चाहिए। यह आदेश केवल उन्हीं शिक्षकों पर लागू होना चाहिए जिनकी नियुक्ति 2011 के बाद हुई जब टीईटी अनिवार्य किया गया था। 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों पर टीईटी थोपना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि उस समय टीईटी की कोई व्यवस्था ही नहीं थी। अगर कोर्ट यह निर्णय करता है कि टीईटी न होने पर प्रमोशन रोका जाएगा तो वह समझने योग्य और उचित हो सकता है लेकिन सेवा छोड़ने की शर्त लगाना न केवल कठोर बल्कि अव्यावहारिक भी है। यह फैसला उन शिक्षकों के हितों के प्रति लापरवाही दर्शाता है जिन्होंने वर्षों की सेवा में शिक्षा की गुणवत्ता को ऊपर उठाया है। समस्त शिक्षक समाज को अपने वरिष्ठ शिक्षकों के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए और उनकी गरिमा एवं अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। अनुभव और सेवा को सम्मान देने का यही सही समय है ताकि शिक्षा का स्तंभ मजबूत बना रहे और आने वाले पीढ़ी के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित हो सके।

More Stories
मथुरा 17 नवंबर 25*OPERATION CONVICTION थाना हाईवे ।*
प्रयागराज 17/11/25*प्रयागराज अपराध बुलेटिन और जनरल समाचार —
मथुरा 17 नवंबर 25* एक अभियुक्त व एक बाल अपचारी को चोरी के एक-एक मोबाइल फोन सहित किया गिरफ्तार ।