औरैया07जून*अत्याचारी का एक दिन अंत अवश्य होता है – आचार्य*
*पांचवे दिन आचार्य ने सुनाई हिरण्य कश्यप एवं पहलाद की कथा*
*कंचौसी,औरैया।* कंचौसी गांव में बगिया वाले बाबा पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पाँचवे दिन मंगलवार को कथा वाचक पं. राम श्याम महाराज ने हिरण्य कश्यप व भक्त प्रहलाद की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि हिरण्य कश्यप अपने भाई की मौत का बदला भगवान विष्णु से लेने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या करने के लिए एक वट के नीचे बैठ गया। जहां देव गुरु वृहस्पति तोता का रूप धारण कर वृक्ष पर बैठ गये, और नारायण नाम का रट लगाने लगा। आजिज हिरण्य कश्यप तपस्या छोड़ कर घर आ गया। पत्नी ने पूछा कि आप तपस्या छोड़कर क्यों चले आये। तो तोता की बात बताई। पत्नी ने भी भगवान के नाम का जप किया और गर्भ ठहर गया। समय पूरा होने पर भक्त प्रहलाद के रूप में बालक का जन्म हुआ। जब प्रहलाद गुरुकुल से घर आये तो हिरण्य कश्यप ने पूछा कि क्या शिक्षा ग्रहण किए हो। प्रहलाद भगवान का गुणगान करने लगे। इससे हिरण्य कश्यप क्रोधित हो उठा और कहा कि तुम मेरे शत्रु का गुणगान कर रहे हो। लेकिन प्रहलाद ने भगवान की अराधना नहीं छोड़ी, हिरण्या कश्यप अत्याचार करता रहा। और भगवान प्रहलाद को बचाते रहे। एक दिन हिरण्य कश्यप ने प्रहलाद से कहा कि तुम्हारे भगवान कहां हैं। प्रहलाद ने जवाब दिया कि कण-कण में हैं, और इस खंभे में भी हैं। इतना सुनते ही हिरण्य कश्यप ने तलवार निकाल कर खंभे पर वार कर दिया। तब नरसिंह के रूप में भगवान प्रकट होकर हिरण्य कश्यप का वध कर देते है।

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