औरैया05सितम्बर*भारतीय संस्कृति प्रतीक डॉ० राधाकृष्णन जयंती पर दिए वक्तव्य*
*औरैया।* समाजवादी पार्टी के जिला महासचिव ओम प्रकाश ओझा व सपा के वरिष्ठ जिला उपाध्यक्ष अवधेश भदौरिया ने शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने- अपने वक्तव्य दिये हैं। जिसमें समाजवादी पार्टी के जिला महासचिव ओम प्रकाश ओझा ने अपने वक्तव्य देते हुए कहा कि सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 ईस्वी को मद्रास के तिरुतणी गांव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम वीर स्वामी था, जो धार्मिक एवं विद्वान थे। इनकी माता भी धार्मिक विचारों की थी। पारिवारिक धार्मिक वातावरण का प्रभाव इनके ऊपर भी पड़ा। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन बाल्यल से संकोची स्वभाव के थे , तथा तीव्र बुद्धि के होने के कारण पढ़ाई में उनकी अधिक रूचि थी , तथा सदा किताबें पढ़ते रहते , और अपने ज्ञान को बढ़ाते थे। इनकी शिक्षा दीक्षा गांव के स्कूल से प्रारंभ हुई थी। सन 1903 ईस्वी में मद्रास में एंट्रेस की परीक्षा में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण हुए। राधाकृष्णन जी की विद्वता का परिचय उस समय मिला जब उन्होंने अंग्रेजी में लेख लिखकर अंग्रेज एपी हांग को प्रभावित किया , और उन्होंने उनकी खूब प्रशंसा की। तत्पश्चात इनके लेख , निबंध विदेशी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। डॉक्टर राधाकृष्णन की योग्यता व प्रतिभा को देखते हुए 1908 ईस्वी में मात्र 20 वर्ष की आयु में मैसूर के प्रसिद्ध दीवान मोक्ष मुंडम विश्वेश्वरैया ने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शन वक्त अर्थशास्त्र का शिक्षक नियुक्त किया। राधाकृष्णन जी 1908 से 1921 तक दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक पद पर कार्यरत रहे। डॉ० राधाकृष्णन को अपने विषय से संबंधित गूढ़ ज्ञान था। तथा वह ज्ञान प्राप्त करने के लिए नई – नई पुस्तकें पढ़ते और स्थान-स्थान पर जाकर ज्ञान अर्जित करते रहते थे। उस ज्ञान का संग्रह पुस्तकों , लेखो में लिखकर अपने विचार दूसरों तक पहुंचाते थे।
इसी तरह से समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ जिला उपाध्यक्ष अवधेश भदौरिया
ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1950 ईस्वी में डॉ० राधाकृष्णन को भारत का राजदूत बनाकर मास्को भेजा गया।उस समय भारत और मास्को के राजनैतिक संबंध अच्छे नहीं थे किंतु डॉक्टर कृष्णन ने सच्चाई ईमानदारी तथा अपने तटस्थता की नीति को अपना कर भारत और रूस के मधुर राजनैतिक संबंध स्थापित किए। 1952 में डॉक्टर राधाकृष्णन निर्विरोध उपराष्ट्रपति चुने गए और 11 मई 1962 तक वह इस पद पर सुशोभित रहे। उन्होंने चीन जापान युद्ध आदि देशों का भ्रमण कर भारत की राष्ट्र नीति को मजबूत बनाया। जब राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद बीमार पड़े तब राधाकृष्णन जी नहीं कुछ समय तक के लिए राष्ट्रपति पद को कुशलतापूर्वक संभाला। उन्होंने इस पद पर रहकर अपनी तू विचारों द्वारा राज्यसभा को पवित्र बनाने के लिए कार्य किया, तथा उनका सिद्धांत था कि असाधारण परिस्थितियों में भी मनुष्य को मानसिक संतुलन नहीं खोना चाहिए। डॉ० राजेंद्र प्रसाद के बाद डॉ० राधाकृष्णन जैसा महान दार्शनिक एवं शिक्षक को 12 मई 1962 को स्वतंत्र भारत के गौरवमई राष्ट्रपति पद पर आसीन किया गया। डॉ० राधाकृष्णन का 15 अप्रैल 1975 को निधन हो गया, और समस्त विश्व ने एक महान दार्शनिक , शिक्षा शास्त्री , महान चिंतक , कुशल राजनीतिज्ञ खो दिया था। राधाकृष्णन सदैव शिक्षक ही रहे। सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति , दर्शन और धर्म के प्रतीक के रूप में सदा-सदा के लिए विश्व मे अमर होकर प्रेरणा स्रोत के रूप में सदा स्मरण किए जाते रहेंगे।
More Stories
लखनऊ16जु 25*यूपीआजतक न्यूज चैनल पर रात 10.30 बजे की बड़ी खबरें……………….*
अयोध्या16जून25*स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही की गाज सीएचसी अधीक्षक डॉ0 मदन बरनवाल पर गिरी
मथुरा 16 जून 25*थाना वृन्दावन पुलिस ने 01 अभियुक्त को चोरी की 02 मोटरसाइकिल के साथ गिरफ्तार कर भेजा जेल*