उत्तराखंड11जुलाई25*सावन का पहला दिन आज, जानें शिव पूजन मुहूर्त, विधि, मंत्र, भोग व आरती
सावन का पहला दिन 11 जुलाई 2025, शुक्रवार को है। सावन माह भगवान शिव का प्रिय महीना है। मान्यता है कि इस माह में भगवान शंकर की विधिवत पूजा-अर्चना व सोमवार व्रत करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति को मनवांछित फल मिलता है और संतान सुख मिलने के साथ जीवन में सुख-समृद्धि आती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कुछ भक्त 16 सोमवार के व्रत भी रखते हैं। 16 सोमवार व्रत की शुरुआत सावन माह के पहले सोमवार से होती है। सावन माह में भगवान शिव के अलावा माता पार्वती की उपासना भी की जाती है। सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जाता है। जानें सावन माह के पहले दिन शिव पूजन के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, शिव जी के प्रिय भोग, मंत्र व आरती।
सावन कब से कब तक रहेगाः सावन माह की शुरुआत 11 जुलाई होगी और सावन माह का समापन 9 अगस्त को होगा। इस अवधि में शिव पूजन करने से शुभ फलों के प्राप्ति की मान्यता है।
सावन के पहले दिन के शिव पूजन मुहूर्तः सावन के पहले दिन शिव पूजन का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:10 बजे से सुबह 04:51 बजे तक रहेगा। अभिजित मुहूर्त सुबह 11:59 बजे से दोपहर 12:54 बजे तक रहेगा। विजय मुहूर्त दोपहर 02:45 बजे से दोपहर 03:40 बजे तक रहेगा। शाम के समय शिव पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 07:21 बजे से शाम 07:41 बजे तक रहेगा।
भगवान शिव पूजा विधि – सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि
करके स्वच्छ स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, भांग, धतूरा, दही, घी, शहद, शक्कर, चंदन, अक्षत व गंगाजल आदि अर्पित करें। भगवान शिव के सामने घी का दीपक व धूप जलाएं। शिव मंत्र ऊं नमः शिवाय का जाप करें। भगवान शिव की आरती उतारें और शिव चालीसा का पाठ करें।
भगवान शिव के प्रिय मंत्र- हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव का
प्रिय मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ है। इसे पंचाक्षर मंत्र भी कहा जाता है। इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र ‘ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्’ भी भोलेनाथ को प्रिय है।
भगवान शिव के प्रिय भोगः हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को खीर, मालपुआ, और ठंडाई जैसे भोग अत्यंत प्रिय हैं। इसके अलावा भगवान शंकर को सफेद मिठाई, पंचामृत और फलों का भोग लगाया जा सकता है।
भगवान शिव की आरती (ॐ जय शिव ओंकारा)-
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्धांगिनी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥ एकानं चतुरानन पंचानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषभान साजे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥ दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥ अक्षमाला वनमाला मुंडमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर मंगल धारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥ श्वेताम्बर
पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव ओंकार
कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर के मध्ये ये तृतीया एका ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥ भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥ जटा में गंग बहत है, गल मुंडन मंगल। शेष नाग ललनावत, ओढ़त मृगछाला ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥ काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी। त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे।
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥ ओम जय शिव ओंकारा ॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे ॥
ओम जय शिव ओंकारा ॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा ॥
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