June 29, 2024

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इटावा08नवम्बर*आखिरी मौका?शिवपाल सिंह की पसंद ,तेजू यादव स्वर्गीय मुलायम सिंह जी की सीट से होंगे प्रत्याशी*

इटावा08नवम्बर*आखिरी मौका?शिवपाल सिंह की पसंद ,तेजू यादव स्वर्गीय मुलायम सिंह जी की सीट से होंगे प्रत्याशी*

इटावा08नवम्बर*आखिरी मौका?शिवपाल सिंह की पसंद ,तेजू यादव स्वर्गीय मुलायम सिंह जी की सीट से होंगे प्रत्याशी*

*सैफई परिवार में हो सकती है एकता,शिवपाल और अखलेश एक बार फिर होंगे एक दूसरे के करीब- सैफई के सकुनी पर रखनी होगी पैनी नजर?*

*सुबह का भूला यदि शाम को घर वापस आ जाए, तब उसे भूला नहीं कहा जा सकता: खादिम अब्बास*

इटावा।जिसके मन में चोर होता है वह डरपोक होता है, उसे अपने साए से भी डर लगता है ।चाचा_ भतीजा यानी शिवपाल और अखिलेश के बीच किस बात का झगड़ा है, इसकी वास्तविकता की खोज में राजनीतिक हो या सामाजिक ,या हो आमजन सभी लगे हुए हैं। यहां पर इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि स्वर्गीय मुलायम सिंह जी अपने जीवन में किसी से नहीं हारे और उन्होंने हर जोखिम उठाकर अपने सामने वाले प्रतिद्वंदी को सरेआम परास्त किया ,ऐसा सुनहरा इतिहास है मुलायम सिंह जी का। लेकिन कुदरत की कुछ ऐसी मंशा रही कि वह अपने उस पढ़े-लिखे राजनीतिक व सामाजिक रीत और नीत से जीरो रहे उस बेटे से, जिसका नाम उन्होंने प्यार से टीपू रखा था। और जिसे उन्होंने विरासत में उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुमत की सरकार की सत्ता सौंपकर उस बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया था, उससे वह परास्त हो गए ?ऐसा भी कहा जा सकता है कि ऐसा जतन करके वह सूखे में रपट गए।

*बच्चे को बचा नही सके*
उत्तर प्रदेश की बागडोर जिन मुलायम सिंह जी ने अपने बेटे अखिलेश यादव को सौपी थी, वह पढ़ा-लिखा बेटा राजनीति में होनहार, दमदार व दिलदार नहीं निकला ? इसमें मुलायम सिंह जी का कतई कोई दोष नहीं है ।सैफई की रणभूमि में महाभारत न हो उसके लिए उन्होंने तमाम जतन किए – लेकिन वह सैफई के सकुनी के षड्यंत्र से अपने बच्चे को बचा नहीं सके,उस सकुनी ने उनके बेटे के दिलों दिमाग में यह जहर भर दिया था कि अपने चाचा से बचे रहना, वरना यह आपका राजपाट आपका चाचा आपसे छीन लेगा ।

*कोमल मन में जहर भर दिया*
उनके उस कोमल मन के बेटे के दिमाग में यह बात घर कर गई और वह नादानी में उसी डाल को काटने में जुट गया, जिस डाल पर वह बैठा हुआ था ।मुलायम सिंह जी का सौभाग्य रहा कि उन्हें शिवपाल सिंह यादव की शक्ल में एक वफादार भाई मिला जिसने उनसे तमाम राजनीतिक सामाजिक गुर सीखे ।जिसने आगे चलकर अपने भ्राता श्री मुलायम सिंह जी का हर संकट की घड़ी में अपनी जान को हथेली पर रखकर उनका साथ दिया। और कुदरत का कमाल देखिए वह शिवपाल राजनीति में अपने अग्रज भाई का संकट मोचन बन गया। शिवपाल सिंह की यह खुशकिस्मती रही कि वह अपने भाई मार्गदर्शक मुलायम सिंह जी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने के सारथी बने ।और उन्होंने अपने भ्राता श्री की सेवा करने के लिए लक्ष्मण और हनुमान दोनों की भूमिका एक साथ निभाते हुए मुलायम सिंह की हर क्षेत्र में सेवा की।

*सब कुछ स्वाहा हो जाएगा*
मुलायम सिंह जी को अपने अनुज शिवपाल की वफादारी पर पूरा भरोसा था, इसलिए उन्होंने एक संरक्षक के रूप में उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव की रक्षा का कवच के रूप में शिवपाल को लगा दिया ,जिसे अखिलेश यादव, मुलायम सिंह की इस इच्छाशक्ति को उनके पार्थिव शरीर की अंत्येष्टि तक नहीं समझ पाए। और वह अपने वास्तविक अंगरक्षक पर वार पर वार करते रहे। ऐसा दृश्य आम जनता ने सार्वजनिक रूप से देखा ।आमजन अखिलेश यादव की उपरोक्त दुर्भावना का मतलब नहीं समझ पा रहा है ,आखिर क्या कारण है कि अखिलेश जी उसी कहावत को चरितार्थ करते हुए नजर आ रहे हैं कि दिन भर चले अढ़ाई कोस ,आखिर उनकी इस शैली से अखिलेश जी का क्या भला होगा,उन्हें यह बात खुलकर आमजन को जरूर बतानी चाहिए?अगर वह न चेते तो उनका सब कुछ स्वाहा हो जाएगा? क्योंकि समय बहुत बलवान होता है ,इसकी जो कद्र करते हैं वही सफल होते हैं।

*हरी-भरी बगिया करनी होगी*
कहावत है कि सुबह का भूला यदि शाम को घर वापस आ जाए तब उसे भूला नहीं कहा जा सकता।शिवपाल सिंह ने सैफई परिवार की उजड़ी बगिया को हरा भरा करने के लिए, मुलायम सिंह जी के निधन के कारण से खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट से सैफई परिवार की एकता बनाए रखने के लिए शिवपाल सिंह ने अपना ये सुझाव दिया है कि मेरी हार्दिक इच्छा है कि नेताजी की खाली सीट को तेजप्रताप सिंह यादव (तेजू यादव) संभालें। शिवपाल सिंह की यह हार्दिक इच्छा एवं सुझाव काबिले तारीफ है यदि ऐसा संभव हुआ तो निश्चित रूप से शिवपाल सिंह और अखिलेश के बीच की दूरियां समाप्त हो सकती हैं और चाचा भतीजा दोनों मिलकर मुलायम सिंह की सीट पर एक ऐतिहासिक जीत हासिल करके भाजपा नेता एवं उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के उस घमंड को चकनाचूर कर सकते हैं,जिसमें उन्होंने सैफई परिवार को सीधी चुनौती देते हुए इटावा में अपनी पार्टी कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि अबकी बार लोकसभा के चुनाव में मैनपुरी में कमल खिलेगा?

*सीधी प्रतिष्ठा दांव पर*
मैनपुरी लोकसभा की सीट से लंबे अंतर से जीतना अखिलेश यादव के लिए महत्वपूर्ण है कि अभी हाल में आजमगढ़ की लोकसभा सीट जो अखिलेश यादव के इस्तीफे से खाली हुई थी और सपा के कद्दावर नेता मोहम्मद आजम खान की रामपुर लोकसभा की सीट जो आजम खान के इस्तीफा के कारण खाली हुई थी उस पर भाजपा ने शानदार जीत हासिल करके अखिलेश यादव आजम खां को बहुत जोर की पटकनी दी थी। जिसकी धमाकेदार आवाज सारे देश की जनता ने सुनी थी। मैनपुरी लोकसभा सीट से अखिलेश यादव की सीधी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है यदि उन्होंने इस सीट पर नादानी दिखाई तब उनका राजनीतिक सूर्य हमेशा हमेशा के लिए अस्त हो जाएगा। अब राजनीति में अखिलेश यादव की कोई भी बहानेबाजी नहीं चलेगी कि वह यह कह कर बच सकें कि चुनाव आयोग और भाजपा की सांठगांठ से वह चुनाव हार गए अब तो अखिलेश यादव को मैनपुरी के होने जा रहे उप लोकसभा के चुनाव में अपनी ईमानदारी और जौहर दिखाने होंगे, नहीं तो होगा गई भैंस पानी में?

*खोया हुआ सम्मान हासिल करें*
अखिलेश यादव के सामने अब आगे चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव की पूरी तैयारियां है। भाजपा इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक कर साम-दाम-दंड-भेद का सहारा लेकर जीत हासिल करना चाहेगी। क्योंकि 2024 में लोकसभा के आम चुनाव जो होने हैं। भाजपा यह संदेश देना चाहेगी उसका मुकाबला करने में उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी में कोई दम खम नहीं है ।उसका प्रयास होगा कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष में बिखराव बना रहे। ताकि उसकी जीत सुनिश्चित हो सके। अब अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के पास आखिरी मौका है कि यह दोनों चाचा और भतीजा सैफई परिवार की राजनीति को कैसे बचाते हैं? तेज प्रताप सिंह यादव (तेजू) की जीत की जिम्मेदारी सबके ऊपर है। यहीं से एक नए सूर्य का उदय होगा और सैफई परिवार की राजनीति गतिमान होगी। भाजपा परास्त हो और विपक्ष विजई हो, इसलिए खादिम अब्बास का यह सुझाव और प्रयास है कि सारे लोगों को अपने निजी गिले-शिकवे और शिकायतें भूलकर एक हो जाना चाहिए। इसी में सैफई परिवार की भलाई है ।अखिलेश कि सपा और शिवपाल की प्रसपा नगर निकाय के चुनाव में एक न भी हो _लेकिन वह एक बीच का रास्ता निकाल सकते हैं वह यह है कि दोनों पार्टी के प्रत्याशी आपसी सामंजस्य से खड़े हो जहां समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार मजबूत हो वहां पर प्रसपा अपना प्रत्याशी चुनाव में ना उतारे, और जहां प्रसपा मजबूत हो वहां पर सपा अपना उम्मीदवार मैदान में नही उतारे। ऐसा होने पर सपा और प्रसपा अपनी खोई हुई शक्ति प्राप्त कर सकते हैं और अपना खोया हुआ मान सम्मान हासिल कर सकते हैं

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