वाराणसी06नवम्ब24*: कालिया नाग के फन पर बांसुरी बजाते दिखे कान्हा, हजारों श्रद्धालु रहे मौजूद*
वाराणसी से प्राची राय की खास खबर यूपीआजतक
धर्म की नगरी वाराणसी में गंगा के किनारे आस्था और विश्वास का अटूट संगम का नजारा उस वक्त देखने को मिला, जब यहां के तुलसीघाट पर गंगा कुछ समय के लिए यमुना में परिवर्तित हो गई और गंगा तट वृन्दावन के घाट में बदल गये. मौका था कार्तिक मास में होने वाले लगभग 450 वर्ष पुरानी श्री कृष्ण लीला की श्रृंखला में नागनथैया लीला के आयोजन का. काशी में ऐसे कई मेले होते हैं, जो किसी न किसी पौराणिक लीला से सम्बंधित होते हैं. इसी में से एक बेहद ख़ास है नाग नथैया लीला, जिसमें बाल स्वरूप भगवान कृष्ण कालिया नाग का मर्दन करते हैं
तुलसी घाट पर हर साल इस घटना का मंचन किया जाता है, जिसे नाग नथैया लीला के नाम से जाना जाता है।
इस वर्ष भी नाग नथैया लीला देखने के लिए तुलसी घाट पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। जैसे ही भगवान श्रीकृष्ण यमुना बनी गंगा में गेंद लेने के लिए छलांग लगाए, वैसे ही घाट परिसर ‘जय कन्हैया लाल की’ के उद्घोष से गूँज उठा। इसके बाद भगवान ने नदी में उतरकर कालिया नाग का मर्दन किया।
संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभरनाथ मिश्रा का कहना है कि तुलसीदास ने इस लीला में सभी धर्मों के भेदभाव को मिटा दिया है। सभी कलाकर अस्सी भदैनी के ही होते हैं।
दीपावली के चार दिन बाद होने वाली नागनथैया अपने आप में अनोखी लीला है। बता दें कि काशी के चार लक्खा मेला प्रसिद्ध हैं। इसमें रथयात्रा का मेला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेतगंज की नक्कटैया और तुलसी घाट की नाग नथैया शामिल है। इसमें से तीन लक्खा मेला तो संपन्न हो गए हैं। एक लाख से अधिक भीड़ आने के चलते इन्हें लक्खा मेला कहा जाता है।
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