महाराष्ट्र 28अगस्त 25* भगवान गणेश को बप्पा और मोरया क्यों कहा जाता है, इसके पीछे की कहानी है बेहद रोचक
महाराष्ट्र से कालूराम की खास खबर…
गणेशजी के जयकारे लगाते समय हम अक्सर गणपति बप्पा मोरया बोलते हैं। ऐसा बोलने के पीछे कई रोचक कथाएं छिपी हुई हैं। ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं कि आखिर भगवान गणेश को बप्पा और मोरया क्यों कहा जाता है।
इसके पीछे है महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव की एक कथा इसके पीछे के रोचक कथा है कि लगभग 600 वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव में एक भगवान गणेश के भक्त हुआ करते थे। इन्हें मोरया गोसावी नाम से जाना जाता था। मान्यता है कि मोरया गोसावी गणपतिजी के अंश थे और इनका जन्म 1375 ई. में हुआ था। इनके पिता वामन भट्ट और माता पार्वती भी भगवान गणेश के भक्त थे। ऐसी मान्यता है कि गणेशजी इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हीं के घर में जन्म लेने का वरदान दिया था।
मोरया के सपने में आकर गणेशजी ने कही ये बात कहा जाता है कि बचपन से ही मोरया गोसावी भगवान गणेश की भक्ति में लीन रहते थे और गणेश चतुर्थी पर चिंचवाड़ से 95 किलोमीटर दूर पैदल चलकर मयूरेश्वर मंदिर के दर्शन करने जाते थे। बता दें कि भगवान गणेश की सवारी मयूर यानी मोर होने से उन्हें मयूरेश्वर नाम से भी जाना जाता है। 117 साल तक लगातार मोरया ऐसा ही करते थे। जब वो वृद्धावस्था में आ गए तो उनके लिए मयूरेश्वर मंदिर जाना बहुत मुश्किल हो गया था। ऐसे में एक दिन भगवान गणेश इन्हें सपने में दिखाई दिए और उन्होंने कहा की अब तुम्हें मंदिर जाने की आवश्यकता नहीं है। कल के दिन जब स्नान करके तुम कुंड से निकलोगे, तो अपने सामने मुझे देखोगे। यह स्वप्न अगले दिन सच हो गया और कुंड से निकलने पर उन्हें अपने पास एक गणेशजी की छोटी सी प्रतिमा देखने को मिली जो बिल्कुल वैसी थी, जैसी उन्होंने अपने सपने में देखी थी।
चिंचवाड़ और मयूरेश्वर मंदिर से जुड़ी मान्यता मोरया ने भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना चिंचवाड़ में ही की और धीरे-धीरे वह स्थान दूर-दूर तक भक्तों के बीच प्रसिद्ध होता गया। इससे भक्तों और भगवान के बीच का अंतर कम होने लगेगा। तभी से लोगों ने गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लगाने शुरू कर दिए। माना जाता है कि चिंचवाड़ में मौजूद गणेश भगवान की प्रतिमा मयूरेश्वर भगवान की अंश है। ऐसे में हर साल उनके अंश को मिलाने के लिए मयूरेश्वर मंदिर तक डोली निकाली जाती है।
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