प्रतापगढ़24फरवरी25*चिंताजनक : महिला सशक्तिकरण की अवधारणा पर पानी फेर रहे प्रतिनिधि*
*महिला सभासद का सिर्फ नाम, पति या देवर प्रतिनिधि बनकर निपटा रहे काम*
*प्रतापगढ़ :* जनपद की ज्यादातर नगर पंचायतों में सभासद चुनी गई महिलाओं की शक्ति महज उनके नाम तक ही सीमित है। महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक आरक्षण कर रखा है। लेकिन नगरीय निकायों में आज भी चुनकर आई महिला सभासदों के स्थान पर उनके पति या पुत्र ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। मतलब साफ है कि आरक्षण की मजबूरी ने महिलाओं को सभासद तो बना दिया है, लेकिन असली सभासद तो उनके प्रतिनिधि ही हैं। महिलाओं की जगह उनके पति, देवर या फिर उनके पुत्र ही काम कर रहे हैं। अधिकांश नगर पंचायतों में तो उन्हें हस्ताक्षर करने तक का मौका नहीं दिया जाता। जिन नगर पंचायतों में सभासद महिलाएं हैं वहां पूरा काम उनके पति, पुत्र, या देवर प्रतिनिधि बनकर देखते हैं। चुनाव जीतने के बाद इनकी मुहर, डोंगल व पंचायतों से जुड़े अभिलेख भी प्रतिनिधि ही संभालते हैं। अधिकांशतः सभासद के बजाए लोग उनको ही सभासद कहते हैं और समझते हैं। महिला सभासदों के प्रतिनिधियों से सरकारी कार्यालय में अधिकारी मिलते जुलते हैं मगर उनसे यह नहीं पूछते कि महिला सभासद के स्थान पर आप क्यों आते हो। ऐसे में महिला सशक्तिकरण की अवधारणा पर पानी फिर रहा है। चुनाव से पूर्व महिला उम्मीदवारों ने पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं, रिश्तेदारों के साथ जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया था। लेकिन चुनाव के बाद अब तक कई मतदाताओं ने महिला सभासदों की शक्ल नहीं देखी है। मतदाताओं का कहना है कि समस्याओं के निराकरण के लिए मोबाइल फोन लगाने पर महिला सभासद के पति, पुत्र से ही बात होती है। वे समस्याएं सुनकर निराकरण करा देते हैं या फिर प्रयास करते हैं। महिला सभासद के पति-पुत्र ही वार्ड विकास की रणनीति बनाते देखे जाते हैं।
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