July 27, 2024

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झाँसी30सितम्बर*जो भक्त सच्चे मन से देवी जी की पूजा करता है,मावली माता जरुर पूरी करती है- विजय तिवारी।

झाँसी30सितम्बर*जो भक्त सच्चे मन से देवी जी की पूजा करता है,मावली माता जरुर पूरी करती है- विजय तिवारी।

झाँसी30सितम्बर*जो भक्त सच्चे मन से देवी जी की पूजा करता है,मावली माता जरुर पूरी करती है- विजय तिवारी।

जो भक्त सच्चे मन से देवी जी की पूजा करता है तो उसकी मनोकामना बीस भुजाओं वाली मावली माता जरुर पूरी करती है विजय तिवारी।

झांसी 30 सितंबर । झांसी जिले से 70 एवं तहसील मुख्यालय मऊरानीपुर से 10 किलोमीटर दूर ग्राम भदरवारा में स्थित मावली माता परिसर में विराजमान आदिशक्ति 20 भुजाओं वाली भद्रकाली मां का प्राचीन मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां पर चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि में देश के कोने कोने से अनेकों श्रद्धालु यहां पर मत्था टेकने के लिए आते है। जिसमें बुजुर्गों का कहना है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मावली माता की आराधना करता है तो मां उसकी पुकार जरूर सुनती है। अभी तक इस प्राचीन मंदिर में जो भी दीन दुखी आया वह कभी भी खाली हाथ नही लौटा तथा मां उसकी मुराद जरूर पूरी करती है। शारदीय नवरात्र के चलते मंदिर के पुजारी विजय तिवारी के निर्देशन में फोर लाइन पर स्थित संपर्क मार्ग पर बने मुख्य पताका द्वार से लेकर मंदिर प्रांगण तक दिव्य एवं भव्य रूप में इलेक्ट्रिक लाइटों, झालरों से सजाया गया है‌ जो रात्रि में ग्रामीणों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। बीस भुजाओं वाली मां की महिमा को लेकर अनेक मान्यताएं आज भी प्रचलित है। जिसमें मावली माता दिन में तीन रूप बदलती है सुबह के समय बाल रूप, दोपहर में स्त्री तथा सायं को वृद्ध रूप में भक्तों को दर्शन देती है। गांव के वयोवृद्ध नागरिकों का कहना है कि माता के मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से मन्नत मांगता है तो मां उसके मनोरथ को अवश्य पूर्ण करती है। भदरवारा गांव के बुजुर्गो का कहना है कि महाभारत काल के दौरान जब पांडव अज्ञातवाश व्यतीत कर रहे थे तभी उन्होंने अपनी रक्षा के लिए देवी मां की आराधना की जिससे भक्तों की पुकार सुनकर माता ने दर्शन देकर कहा की आप लोग आज यहां से चलेंगे तो में पीछे पीछे साथ चलूंगी लेकिन मेरी ओर कोई भी मुड़कर नहीं देखना नही तो मैं वही पर रुक जाऊंगी। जिससे रोरा जंगल से पांडवों ने अपनी यात्रा सुबह के प्रारंभ की और दोपहर होते होते भदरवारा जंगल में पहुंचे लेकिन जंगल अधिक घना एवं उसमें झाडिया होने से पांडवों ने समझा की कहीं मां की चुनरिया उलझ न जाए जिससे पांडवों ने संशय होने पर पीछे मुड़कर देखा तो माता मावली के पेड़ के नीचे ठहर गई और उन्होंने कहा की आगे रौनी ग्राम के शिखर पर जाओ और वही से बाकी बचा अज्ञातवास में रहो हम यहीं से तुम्हारी रक्षा करूंगी। तभी से ऐसी मान्यता है कि भद्रकाली माता के नाम से भदरवारा ग्राम बस गया। वही कुछ लोगों का मानना है की मराठा राज्य के दौरान भदरवारा मराठों के अधिकार में रहने से ग्राम मराठों की तहसील कहा जाता था। जिसमें ब्रिटिश काल से प्रकाशित गजट में भी यह अंकित है। ग्राम भदरवारा में स्थित भद्रकाली माता आदि काल से एक छोटे से मंदिर में विराजमान है। मंदिर के जीर्णोद्धार से पहले मावली माता के नाम से मंदिर जाना जाता रहा है। ग्रामीणों की माने तो आदि शक्ति मावली मां के देश में सिर्फ दो ही स्थान है जिसमे से एक धनेश्वर तथा दूसरा मऊरानीपुर तहसील से 10 किलोमीटर दूर भदरवारा गांव में वर्षों पुराना मंदिर है। तो वही कुछ लोग महाभारत कालीन तो कुछ चंदेलकालीन के समय से मंदिर को स्थापित बताते है। भद्रकाली माता मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र की नवदुर्गा में मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ आयोजित होने के अलावा चैत्र मास की पूर्णमासी को विशाल रूप में ताड़का का वध हाथी एवं घोड़ों से विशाल रूप में बनाए जाने वाले ताड़का के वध का मंचन किया जाता है। जिसे हजारों लोगों की भीड़ के दौरान ताड़का के पुतले में देर शाम को आग लगा दी जाती है। जो एक आकर्षण का केंद्र होता है। वहीं चल रही शारदीय नवरात्रि के परमा तिथि से लेकर नवमी तक प्रीतिदिन आस पास के ग्रामों के अलावा दूर दराज के भक्त मां के दरबार में मत्था टेकर हाजरी लगा रहे है। चल रहे नवरात्रि में प्रीतिदीन कन्याभोज एवं दोनो पहर में मां की आरती तथा परिसर में मानस मंच पर श्रीमद भगवद पुराण का आयोजन जारी है।

झांसी से सुरेन्द्र द्विवेदी की रिपोर्ट यूपी आजतक।

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