November 10, 2024

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कानपुर15फरवरी24*नवजात को त्वरित चिकित्सा देने में न्यू बॉर्न स्टेबिलाइजेशन यूनिट की महत्वपूर्ण भूमिका

कानपुर15फरवरी24*नवजात को त्वरित चिकित्सा देने में न्यू बॉर्न स्टेबिलाइजेशन यूनिट की महत्वपूर्ण भूमिका

कानपुर15फरवरी24*नवजात को त्वरित चिकित्सा देने में न्यू बॉर्न स्टेबिलाइजेशन यूनिट की महत्वपूर्ण भूमिका

मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में तीन दिवसीय प्रशिक्षण सत्र का समापन

विभिन्न जिलों से आए 24 चिकित्सकों और स्टाफ नर्स को दिये गये प्रमाण पत्र

कानपुर 15 फरवरी 2024
जन्म से लेकर 28 दिन तक के बच्चे की अवस्था को नवजात कहा जाता है। बीमारियों और संक्रमण की दृष्टि से यह अवस्था बेहद संवेदनशील होती है। इस अवस्था में अगर बच्चे को किसी भी प्रकार की बीमारी हो और उसे तुरंत चिकित्सा मिल जाए, तो उसके जीवन की रक्षा हो जाती है। इससे शिशु मृत्यु दर में भी कमी आती है। यह बातें जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अरुण कुमार आर्या ने कहीं। वह गुरुवार को न्यू बॉर्न स्टेबिलाइजेशन यूनिट (एनबीएसयू) के तीन दिवसीय प्रशिक्षण सत्र के समापन अवसर पर विभिन्न जिलों से आए चिकित्सकों और स्टाफ नर्स को सम्बोधित कर रहे थे। प्रशिक्षण सत्र में करीब 22 चिकित्सकों और स्टाफ नर्स को प्रशिक्षण दिया गया।

डॉ आर्य ने बताया कि पैदाइश पीलिया ग्रसित बच्चे, न रोने वाले बच्चे, बुखार पीड़ित बच्चे, कम वजन के नवजात और जन्म के समय गर्भ का गंदा पानी पी लेने वाले बच्चे न्यू बॉर्न स्टेबिलाइजेशन यूनिट में रखे जाते हैं। अगर बच्चे का वजन 1800 ग्राम से भी कम है, तो उसे उच्च चिकित्सा संस्थान रेफर कर दिया जाता है। उन्होंने बताया कि बच्चे के इलाज के दौरान उसका स्तनपान भी जारी रखा जाता है। अगर मां एनबीएसयू में आने में असमर्थ है तो उसका दूध कटोरी में निकालकर पिलाया जाता है। यह कार्य स्टॉफ नर्स करती है।

बालरोग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर व मुख्य प्रशिक्षक डॉ अमितेश ने बताया कि प्रशिक्षण में शिशु मृत्यु दर को घटाने के लिए सरकार की एक परियोजना है, जिसमें बीमार पैदा होने वाले बच्चों और पैदा होते ही जिनको तकलीफ है उनको समय रहते इलाज देकर उनकी जान बचाई जा सके और उनका स्वास्थ्य बेहतर बनाए रखने के लिए चिकित्सकों एवं स्टाफ नर्स को प्रशिक्षण दिया जाता है।

उत्तर प्रदेश टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (यूपीटीएसयू) संस्था की विशेषज्ञ डॉ सुदिप्ता घोषाल ने बताया कि प्रदेश में शिशु मृत्यु दर इस प्रकार के प्रशिक्षण से कम की जा सकती है। विभिन्न प्राथमिक-सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी-सीएचसी) पर भी बच्चों को उचित सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं। जिला मातृत्व स्वास्थ्य परामर्शदाता हरिशंकर मिश्रा का कहना है कि एनबीएसयू में कार्य करने वाली नर्स को समय समय पर प्रशिक्षित किया जाता है और नवजात की देखभाल की नवीनतम जानकारी दी जाती है। प्रशिक्षण के समापन समारोह में सभी प्रशिक्षुओं को प्रमाण पत्र प्रदान किये गए।

एनबीएस यूनिट का यह है उद्देश्य

एनबीएस यूनिट का मुख्य उद्देश्य अति गंभीर नवजात शिशुओं की स्वास्थ्य देखभाल करना है। शुरुआत के एक या दो घंटे के अंदर समुचित उपचार देकर नवजात की मृत्यु दर को नियंत्रित किया जा सकता है। जिले में ककवन और पतारा को छोड़कर बाकि सभी स्वास्थ्य इकाइयों पर एनबीएसयू संचालित किया जा रहा है। अगर एनबीएसयू से कोई बच्चा रेफर किया जा रहा है, तो अभिभावकों को 102 नम्बर एम्बुलेंस सेवा उपलब्ध कराने का भी प्रावधान है। इस यूनिट में प्रीमैच्योर बेबी, कम वजन के शिशु, सांस की समस्या वाले शिशु, पीलिया या डायरिया ग्रस्त शिशुओं का इलाज किया जाता है। साथ ही नजदीकी सीएचसी पीएचसी से रेफर बच्चों का भी इलाज किया जाता है।

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