कानपुरनगर19मार्च24*Fine/Penalty/Adjudication Concept for Corporates under Companies Act” पर हाफ-डे सेमिनार आयोजित किया गया।
आज दिनाँक 19 मार्च, 2024 को सायं 04:30 बजे, मर्चेंट्स चेम्बर ऑफ उत्तर प्रदेश की कॉर्पोरेट अफेयर्स समिति एवं कानपुर चैप्टर ऑफ़ NIRC ऑफ़ ICSI द्वारा “Fine/Penalty/Adjudication – Concept for Corporates under Companies Act” पर हाफ-डे सेमिनार आयोजित किया गया।
सत्र के मुख्य-वक्ता सीएस शिखर गोयल ने बताया कि कंपनी कानून ला में किया गया अपराधों के लिए कंपनी कोर्ट में बहुत से विवाद लंबे समय तक पेंडिंग रहते थे। अतः कॉर्पोरेट मंत्रालय ने एक ऐसी प्रक्रिया लागू की है जिससे कुछ अपराधों पर पेनल्टी लगाकर के ही कंपनी को अपराध से मुक्त कर दिया जाएगा।
कंपनी कानून अधिनियम में तीन बातों का उल्लेख है फाइन पेनल्टी एवं इम्प्रिजनमेन्ट।
अतः फाइंड द इंप्रिजनमेंट तो कोर्ट करेगा लेकिन पेनल्टी लगाने का अधिकार एडजुकेटिंग ऑफिसर को दिया गया है।
दिसंबर 2020 में कंपनी कानून में एक बड़ा परिवर्तन लाया गया जिससे बहुत से प्रावधान के तहत जहां पर जेल की सजा थी उसको हटा लिया गया। इसको डि क्रिमिनलाइजेशन का नाम दिया गया था। सरकार ने महसूस किया कि छोटे-छोटे अपराधों के लिए यदि निर्देशकों एवं केएमपी की मैनेजमेंट पर्सनल को जेल की सजा का प्रावधान होगा तो यह एज आफ डूइंग बिजनेस के विरुद्ध होगा। अतः कंपनीज एक्ट में गंभीर आरोपों जैसे फ्रॉड चीटिंग आदि आदि के लिए भी केवल सजा का प्रावधान है।
एडजुकेटिंग ऑफिसर, आरओसी रैंक के नीचे नहीं होगा जो की पेनल्टी डिसाइड करेगा।
चेंबर के सदस्य आदेश टंडन ने उक्त शब्दावली में और विस्तार देते हुए बताया कि इस तरह की एजुकेटिग प्रक्रिया सही नही है। विचार यह है कि हर स्टेट में एक एजुकेटिव ऑफिसर होना चाहिए जो कि आरओसी ऑफिस से किसी भी कार्य में संबंधित ना हो जिससे कि कॉर्पोरेट अपना पक्ष निर्भीकता पूर्वक उसके सामने रख सके। यह प्रक्रिया सेबी के द्वारा एडजुकेटिंग प्रोसीडिंग में लागू होती है। वहां पर एजुकेटिव ऑफिसर की एक अलग से विंग होती है जो की सेबी के अन्य किसी कार्य को नहीं देखता है और ना ही उनमें उनकी दखलअंदाजी होती है।
स्वतंत्र एजुकेटिव ऑफिसर होने पर कॉरपोरेट सेक्टर को पूर्ण रूप से एजुकेटिंग ऑफिसर के सामने न्याय की आशा हो जाती है। कंपनीज एक्ट के केवल पर वह प्रावधान जिसमें जेल एवं फाइन है वह ही कंपनी अधिनियम की धारा 441 के अनुसार कंपाउंडेबल नहीं है। कंपाउंडेबल का अर्थ यह है कि शो कॉज नोटिस आने पर या स्वतः कोई भी कॉरपोरेट रीजनल डायरेक्टर या नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के सामने आवेदन कर अपने द्वारा किए गए किसी भी अपराध को पेनल्टी लगवाकर माफ करवा सकता है।
इसमें यह भी प्रावधान है कि यदि कंपनी में लगे सारे डायरेक्टर एक साथ कंपाउंडिंग के लिए नहीं जाते हैं तो हर व्यक्ति वह कंपनी अलग-अलग आवेदन कर कंपाउंडिंग करवा सकता है। कंपनीज एक्ट में बहुत सी जगह ऐसा प्रावधान है कि फाइन या सजा या फाइन या सजा दोनों होने पर निदेशक अयोग्य घोषित हो जाता है लेकिन कंपाउंडिंग के मामलों में एवं पेनल्टी के मामलों में अयोग्य घोषित नहीं माना जाता है। क्योंकि कंपाउंडिंग में कंपाउंडिंग फीस देने पर केस से डिस्चार्ज माना जाता है। फाइन वह होता है जो कोर्ट के द्वारा लगाया जाता है।
सत्र का संचलान चैम्बर के सचिव महेंद्र नाथ मोदी ने किया तथा धन्यवाद-प्रस्ताव सी.एस. मनीष कुमार पाल ने प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से अतुल कानोडिया, रीना जाखोदिया, साकेत शर्मा, मनीष शुक्ला, मनोज यादव, अर्चना गुप्ता, वंदना शर्मा, अरविन्द कटियार आदि उपस्थित थे।
More Stories
सुल्तानपुर8जुलाई25* 50 हजार का इनामी बदमाश एसटीएफ के हत्थे चढ़ा।
सहारनपुर8जुलाई25*थाना सदर बाज़ार पुलिस ने दो वारण्टी आरोपी किए गिरफ्तार…*
रोहतास8जुलाई25*CONGRATULATIONS 💐 ROHTAS POLICE 💐*