June 13, 2025

UPAAJTAK

TEZ KHABAR, AAP KI KHABAR

अनूपपुर23अगस्त24*माहेश्वरी समाज ने तीज-चतुर्थी एक साथ मनाई सत्तू से बने व्यंजन का प्रसाद ग्रहण किया,चंद्रमा को दिया अर्घ्य

अनूपपुर23अगस्त24*माहेश्वरी समाज ने तीज-चतुर्थी एक साथ मनाई सत्तू से बने व्यंजन का प्रसाद ग्रहण किया,चंद्रमा को दिया अर्घ्य

अनूपपुर23अगस्त24*माहेश्वरी समाज ने तीज-चतुर्थी एक साथ मनाई सत्तू से बने व्यंजन का प्रसाद ग्रहण किया,चंद्रमा को दिया अर्घ्य

अनूपपुर (ब्यूरो राजेश शिवहरे)यूपीआजतक

तीज और चतुर्थी एक साथ गुरुवार को मनाई गई।महिलाओं ने चतुर्थी का व्रत रखा।रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य दिया।माहेश्वरी समाज की महिलाओं ने सातुड़ी तीज पर व्रत रखा।रात्रि को चंद्रमा का पूजन किया।अर्घ्य दिया और सत्तू से बने व्यंजनों का प्रसाद ग्रहण किया।इससे पहले सत्तू को पासा गया।सत्तू से बने विभिन्न व्यंजन बनाए,इन्हें प्रसाद स्वरूप खाया।
माहेश्वरी समाज की महिलाओं ने शाम को निमड़ी की पूजा की।
माहेश्वरी महिला संगठन शहडोल अध्यक्ष साधना मंत्री एवं अनूपपुर अध्यक्ष शशि ईनानी द्वारा सातुड़ी तीज का आयोजन किया गया।उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि भाद्रपद कृष्णपक्ष तृतीया 22 अगस्त 2024 को सम्पूर्ण राजस्थान में मनाया जाने वाला सातुड़ी तीज पर्व इस राज्य की विशिष्ट परम्परा का पर्व है।लेकिन माहेश्वरी समाज के लिये तो यह विशेष महत्व रखता है।कारण यह है कि साक्ष्यों की मान्यता के अनुसार इसी दिन माहेश्वरी समाज के पूर्वज 72 उमराव भगवान महेश की कृपा से पुर्नजीवित हुए थे।

यह है पौराणिक मान्यता

माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति की प्राचीन मान्यताओं के माध्यम से प्रतिपादित किया गया है कि श्राप वश 72 उमराव पत्थर की प्रतिमा में परिवर्तित हो गए थे।तब उनकी पत्नियों ने अपनी तपस्या से भगवान शिव व माता पार्वती को प्रसन्न किया।भगवान शिव ने उन उमरावों को पुनः जीवन प्रदान किया।
इन उमरावों ने पुनः जीवन पाकर तत्काल तलवार आदि शस्त्रों का त्यागकर तराजू को ग्रहण किया एवं माहेश्वरी समाज की स्थापना की।जिस समय भगवान शिव ने उमरावों को पुनः जीवन दिया,उस वक्त उन्हें भूख लगी।भोजन के लिए अन्य वस्तु वहां उपलब्ध न होने से प्रभु के आदेश पर वहां उपलब्ध बालूरेती के पिण्ड बनाये गए एवं भगवान शिव ने मंत्र द्वारा उन रेत के पिण्ड को सत्तु के पिंडों में परिवर्तित कर दिया।
ये सत्तु पिंड खाकर हमारे पूर्वजों ने अपने पेट की ज्वाला शांत की एवं क्षत्रिय वर्ण से वणिक वर्ण की ओर नई जीवन यात्रा माहेश्वरी के रूप में प्रारंभ की।

ऐसे मनाते हैं यह पर्व

जिस तरह तलवार एवं कृपाण से पिण्डों को बड़े कर हमारे पूर्वजों द्वारा खाया गया था,उसी तरह आज भी चांदी या सोने के सिक्के से पिण्डों को बड़े (काटना) करने की परम्परा चली आ रही है।इस दिन 72 उमरावों के भगवान शिव एवं माता पार्वती के आशीर्वाद से पुनः जीवित होने पर उनकी पत्नियों में हुई असीम खुशी ने एक महोत्सव का रूप धारण कर लिया था।
अनेक दिनों से तपस्या में लीन महिलाओं ने अपना उपवास जंगल में उपलब्ध कच्चे दूध,ककड़ी, नींबू एवं प्रभु द्वारा प्रदत्त सत्तु को ग्रहण करके तोड़ा था। ठीक इसी प्रकार आज भी माहेश्वरी महिलाएं तीज के दिन उपवास रखकर शाम को नीमड़ी की पूजा करके, चंद्र दर्शन कर अर्ध्य देती हैं एवं अपना उपवास कच्चे दूध, सत्तु,ककड़ी व नींबू से तोड़ती हैं।

चंद्रमा से सौभाग्य की कामना

रात्रि में चंद्रमा उगने के बाद अर्ध्य दिया जाता है।अर्ध्य देते समय बोलते हैं-सोना को सांकलों,मोत्यां को हार,बड़ी तीज (कजली तीज) का चांद के अरग देवता,जीवो बीर-भरतार।अर्ध्य देने के बाद पिंडा (सत्तू) पासा बड़ा किया जाता है। पति या भाई चांदी के सिक्के से पिंडे का एक टुकड़ा तोड़ते (बड़ा करते) हैं।
पति द्वारा पत्नी को कच्चे दूध के 7 घूंट पिलाकर उपवास खुलवाया जाता है।महिलाएं कलपना निकाल कर सास-ननद को देकर अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद लेती हैं।इसके बाद पूजा की हुई नीमड़ी का एक पत्ता सत्तू के साथ देकर कहती है,नीमड़ी मीठी।
माना जाता है कि ऐसा कहने से वे पीहर ससुराल सभी जगहों पर अपने मीठे व्यवहार से सभी का दिल जीत लेती हैं।

Taza Khabar

Copyright © All rights reserved. | Newsever by AF themes.