October 25, 2024

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अनूपपुर 19 जून 24*6 घंटे से लापता हाथियों को सुरक्षाश्रमिकों ने खोज निकला,देर रात दो मकान में की तोड़फोड़,बाल-बाल बचे दो बच्चे, डीएफओ ने किया स्थल का निरीक्षण दिए निर्देश

अनूपपुर 19 जून 24*6 घंटे से लापता हाथियों को सुरक्षाश्रमिकों ने खोज निकला,देर रात दो मकान में की तोड़फोड़,बाल-बाल बचे दो बच्चे, डीएफओ ने किया स्थल का निरीक्षण दिए निर्देश

अनूपपुर 19 जून 24*6 घंटे से लापता हाथियों को सुरक्षाश्रमिकों ने खोज निकला,देर रात दो मकान में की तोड़फोड़,बाल-बाल बचे दो बच्चे, डीएफओ ने किया स्थल का निरीक्षण दिए निर्देश

अनूपपुर (ब्यूरो राजेश शिवहरे)19/जून/जिले के जैतहरी,अनूपपुर तहसील अंतर्गत बैहार,ठेही,गौरेला,केकरपानी से बुधवार की सुबह 4 दिनों से निरंतर विचरण कर रहे दो नर हाथी ग्राम पंचायत पगना के बांका की बांस प्लांटेशन में विश्राम कर रहे हैं जिसे रात 12 के बाद से लापता होने पर वन विभाग के अंशकालीन सुरक्षाश्रमिकों ने बुधवार की सुबह खोज निकाला मंगलवार एवं बुधवार की मध्यरात्रि दोनों नर हाथी ग्राम पंचायत बैहार के दुखवाटोला के समीप वन परिक्षेत्र अनूपपुर के औढेरा बीट अंतर्गत पी,एफ,363 नागपानी में मंगलवार को पूरा दिन व्यतीत करने बाद देर शाम डालाडीह की सीमा से लगे जंगल में विचरण करते हुए ग्राम पंचायत गौरेला के ठेहीं ग्राम में स्थित आरदा नामक धार्मिक स्थल पर पहुंचकर स्थल के समीप निवासरत जयलाल पिता सुमेर सिंह के कच्चे मकान की दीवार अचानक पहुंचकर छोड़ दी इस दौरान हाथियों को ग्रामीणों द्वारा वन विभाग की उपस्थिति में भगाए जाने पर ठेही गांव के ही निवासी सरदार नायक पिता कवंर नायक के मकान को तोड़कर बुरी तरह क्षतिग्रस्त करते हुए मकान के अंदर रखे विभिन्न तरह के अनाजों को अपना आहार बनाया मकान की दीवार तोड़ने से दीवाल का मालवा घर के अंदर की ओर गिरा जहां दो नावालिक बच्चे फंसे हुए थे वे बाल-बाल बच्चे को हो-हल्ला,सायरन एवं अन्य माध्यमों से वन विभाग ने ग्रामीणों के सहयोग से हाथियों को रहवास क्षेत्र से खदेड़ा जिस पर दोनों हाथी गौरेला गांव के बरटोला,बड़काटोला गौरेला की ओर से गौरेला- केकरपानी मुख्य मार्ग पर चलते हुए केकरपानी गांव के चिरईडोगरी पहाड़ में पहुंचकर रात 12 बजे के लगभग केकरपानी के दुआहीटोला निवासी कोमल सिंह परस्ते के खेत में लगे कटहल के पेड़ में लगे कटहल को एक घंटे तक तोड़ते हुए अपना आहार बनाकर जंगल की ओर छिप गए जिनकी तलाश पूरी रात किए जाने पर भी नहीं मिल सके जिन्हें दुधमनिया एवं औढेरा बीट के अंशकालीन सुरक्षाश्रमिको जिनके पास संसाधनों की कमी होने के बाद भी अत्यंत खतरनाक तथा सबसे बड़ा वन्यप्राणी हाथी को सुबह होते ही दुधमनिया बीट के कक्ष क्रमांक 357 एवं 358 के कूप क्रमांक 3 में विचरण करते हुए खोज डाला जिसके बाद विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों को दोनों हाथियों की वर्तमान विचरण की स्थिति से अवगत कराया गया ज्ञातब्य है कि वनविभाग की सबसे छोटी लेकिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अंशकालिक सुरक्षाश्रमिकों को विभाग के द्वारा कपड़े,जूते एवं टॉर्च तक मुहैया नहीं कराई गई है जबकि बड़े-बड़े अफसर जो बड़े-बड़े वाहनों से चलकर हजारों रुपए की कीमतों के टॉर्च सिर्फ रात समय कुछ स्थलों पर हाथियों की निगरानी में रहते हैं के पास ही उपलब्ध रहता है जबकि अंशकालिक सुरक्षाश्रमिक टॉर्च एवं जूता जैसी आवश्यक सामग्रियों के न होने पर भी मोबाइल की टॉर्च के सहारे हाथियों पर निगरानी रखते हाथियों के आगे एवं पीछे जंगल,पहाड़ एवं खेतों में चलने को मजबूर रहते हैं जिन्हें तत्काल संसाधन उपलब्ध कराने की अपेक्षा ग्रामीण द्वारा अनूपपुर डीएफओ से की गई है इस दौरान अनूपपुर वन मंडलाधिकारी ने ग्राम ठेही में देर रात पहुंचकर हाथियों के विचरण की स्थिति का जायजा लेते हुए ग्रामीणों से चर्चा की तथा वनविभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों को ग्रामीणों की सुरक्षा करते हुए हाथियों पर निरंतर नजर बनाए जाने के निर्देश के साथ किसी भी अधिकारी/कर्मचारी द्वारा बरती जाने वाली लापरवाही पर कठोर कार्यवाही करने की बात कही है।
बुधवार की देर शाम दोनों हाथियों का समूह चौथे दिन/रात को किस ओर विचरण करेगा यह देर होने पर ही पता चल सकेगा।

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संस्कृत विभाग की शोध संगोष्ठी संपन्न वाराणसी से प्राची राय यूपीआजतक गाजीपुर। स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर के भाषा संकाय के अन्तर्गत संस्कृत विभाग की पूर्व शोध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन विभागीय शोध समिति एवं अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के तत्वावधान में महाविद्यालय के सेमिनार कक्ष में किया गया। जिसमें महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी व छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे। उक्त संगोष्ठी मे संस्कृत विभाग शोधार्थिनी रजनी सिंह ने अपने शोध-प्रबन्ध शीर्षक ‘‘ब्रह्मवैवर्तपुराण: एक समीक्षात्मक अध्ययन’’ नामक विषय पर शोध प्रबन्ध व उसकी विषय वस्तु प्रस्तुत करते हुए कहा कि ब्रह्मवैवर्त पुराण मुख्यतः वैष्णव पुराण है। इसके प्रमुख प्रतिपाद्य देवता विष्णु-परमात्मा श्रीकृष्ण हैं। यह चार खण्डों में विभाजित है- ब्रह्मखण्ड, प्रकृति खण्ड, गणपतिखण्ड तथा श्रीकृष्णजन्मखण्ड। ब्रह्मखण्ड में सबके बीज रूप परमब्रह्म परमात्मा (श्रीकृष्ण) के तत्त्व का निरुपण है। प्रकृतिखण्ड में प्रकृति स्वरूपा आद्याशक्ति (श्री राधा) तथा उनके अंश से उत्पन्न अन्यान्य देवियों के शुभ चरित्रों की चर्चा है। गणपतिखण्ड में (परमात्मास्वरूप) श्री गणेश जी के जन्म तथा चरित्र आदि से सम्बन्धित कथाएँ हैं। श्रीकृष्ण जन्मखण्ड में (परमब्रह्म परमात्मास्वरूप) श्री कृष्ण के अवतार तथा उनकी मनोरम लीलाओं का वर्णन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और उनकी अभिन्नस्वरूपा प्रकृति-ईश्वरी श्री राधा की सर्वप्रधानता के साथ गोलोक-लीला तथा अवतार-लीला का विशद वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ विशिष्ट ईश्वरकोटि के सर्वशक्तिमान् देवताओं की एकरूपता, महिमा तथा उनकी साधना-उपासना का भी सुन्दर प्रतिपादन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथाएँ अतीव रोचक, मधुर ज्ञानप्रद और कल्याणकारी है। वर्तमान जनमानस में व्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार आचरण करने से लोगों का हृदय आनन्दित होगा और उनमें व्याप्त बुराइयों के शमन में सहायता मिलेगी तथा समाज में चतुर्दिश शान्ति स्थापित होगी और सभी सुखी होंगे। प्रस्तुतिकरण के बाद विभागीय शोध समिति, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ व प्राध्यापकों तथा शोध छात्र-छात्राओं द्वारा शोध पर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे गए जिनका शोधार्थिनी रजनी सिंह ने संतुष्टिपूर्ण एवं उचित उत्तर दिया। तत्पश्चात समिति चेयरमैन एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध प्रबंध को विश्वविद्यालय में जमा करने की संस्तुति प्रदान किया। इस संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह , मुख्य नियंता प्रोफेसर (डॉ०) एस० डी० सिंह परिहार, शोध निर्देशक डॉ० (श्रीमती) नन्दिता श्रीवास्तव, संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० समरेन्द्र नारायण मिश्र, प्रोफे० (डॉ०) अरुण कुमार यादव, डॉ० रामदुलारे, डॉ० कृष्ण कुमार पटेल, डॉ० अमरजीत सिंह, प्रोफे०(डॉ०) सत्येंद्र नाथ सिंह, डॉ० योगेश कुमार, डॉ०शिवशंकर यादव, प्रोफे० (डॉ०) विनय कुमार दुबे, डॉ० कमलेश, प्रदीप सिंह एवं महाविद्यालय के प्राध्यापकगण तथा शोध छात्र छात्रएं आदि उपस्थित रहे। अंत में अनुसंधान एवं विकास प्रोकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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संस्कृत विभाग की शोध संगोष्ठी संपन्न वाराणसी से प्राची राय यूपीआजतक गाजीपुर। स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर के भाषा संकाय के अन्तर्गत संस्कृत विभाग की पूर्व शोध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन विभागीय शोध समिति एवं अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के तत्वावधान में महाविद्यालय के सेमिनार कक्ष में किया गया। जिसमें महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी व छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे। उक्त संगोष्ठी मे संस्कृत विभाग शोधार्थिनी रजनी सिंह ने अपने शोध-प्रबन्ध शीर्षक ‘‘ब्रह्मवैवर्तपुराण: एक समीक्षात्मक अध्ययन’’ नामक विषय पर शोध प्रबन्ध व उसकी विषय वस्तु प्रस्तुत करते हुए कहा कि ब्रह्मवैवर्त पुराण मुख्यतः वैष्णव पुराण है। इसके प्रमुख प्रतिपाद्य देवता विष्णु-परमात्मा श्रीकृष्ण हैं। यह चार खण्डों में विभाजित है- ब्रह्मखण्ड, प्रकृति खण्ड, गणपतिखण्ड तथा श्रीकृष्णजन्मखण्ड। ब्रह्मखण्ड में सबके बीज रूप परमब्रह्म परमात्मा (श्रीकृष्ण) के तत्त्व का निरुपण है। प्रकृतिखण्ड में प्रकृति स्वरूपा आद्याशक्ति (श्री राधा) तथा उनके अंश से उत्पन्न अन्यान्य देवियों के शुभ चरित्रों की चर्चा है। गणपतिखण्ड में (परमात्मास्वरूप) श्री गणेश जी के जन्म तथा चरित्र आदि से सम्बन्धित कथाएँ हैं। श्रीकृष्ण जन्मखण्ड में (परमब्रह्म परमात्मास्वरूप) श्री कृष्ण के अवतार तथा उनकी मनोरम लीलाओं का वर्णन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और उनकी अभिन्नस्वरूपा प्रकृति-ईश्वरी श्री राधा की सर्वप्रधानता के साथ गोलोक-लीला तथा अवतार-लीला का विशद वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ विशिष्ट ईश्वरकोटि के सर्वशक्तिमान् देवताओं की एकरूपता, महिमा तथा उनकी साधना-उपासना का भी सुन्दर प्रतिपादन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथाएँ अतीव रोचक, मधुर ज्ञानप्रद और कल्याणकारी है। वर्तमान जनमानस में व्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार आचरण करने से लोगों का हृदय आनन्दित होगा और उनमें व्याप्त बुराइयों के शमन में सहायता मिलेगी तथा समाज में चतुर्दिश शान्ति स्थापित होगी और सभी सुखी होंगे। प्रस्तुतिकरण के बाद विभागीय शोध समिति, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ व प्राध्यापकों तथा शोध छात्र-छात्राओं द्वारा शोध पर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे गए जिनका शोधार्थिनी रजनी सिंह ने संतुष्टिपूर्ण एवं उचित उत्तर दिया। तत्पश्चात समिति चेयरमैन एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध प्रबंध को विश्वविद्यालय में जमा करने की संस्तुति प्रदान किया। इस संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह , मुख्य नियंता प्रोफेसर (डॉ०) एस० डी० सिंह परिहार, शोध निर्देशक डॉ० (श्रीमती) नन्दिता श्रीवास्तव, संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० समरेन्द्र नारायण मिश्र, प्रोफे० (डॉ०) अरुण कुमार यादव, डॉ० रामदुलारे, डॉ० कृष्ण कुमार पटेल, डॉ० अमरजीत सिंह, प्रोफे०(डॉ०) सत्येंद्र नाथ सिंह, डॉ० योगेश कुमार, डॉ०शिवशंकर यादव, प्रोफे० (डॉ०) विनय कुमार दुबे, डॉ० कमलेश, प्रदीप सिंह एवं महाविद्यालय के प्राध्यापकगण तथा शोध छात्र छात्रएं आदि उपस्थित रहे। अंत में अनुसंधान एवं विकास प्रोकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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